अब 100 करोड़ के CNG घोटाले में जंग को घेरेंगे केजरीवाल
अब 100 करोड़ के CNG घोटाले में जंग को घेरेंगे केजरीवाल
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नई दिल्ली : दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने करीब 100 करोड़ रुपए के सीएनजी फिटनेस घोटाले में उपराज्यपाल नजीब जंग को भी घेरने का मन बना लिया है । इस तरह अब उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच की जंग में एक नया मोड़ आ सकता है। केजरीवाल से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इस संबंध में सोमवार को सीएम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलकर एलजी के खिलाफ कार्रवाई के मामले में दखल देने की मांग कर सकते हैं।

मामला क्या है ?

यह चर्चित घोटाला शीला दीक्षित के कार्यकाल में 2002 में हुआ था। इस मामले में सीबीआई की  रिपोर्ट के मुताबिक एलजी ने ही गलत तरीके से केस बंद करने के लिए कहा था। इस सीएनजी फिटनेस घोटाले की जांच वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने की थी। एसीबी की जांच में पाया गया कि ठेका आवंटन और सीएनजी वाहनों को संचालन की अनुमति देने की प्रक्रिया में दिल्ली सरकार को 100 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था । परंतु, इसके बाद से एसीबी की जांच में कोई खास प्रगति नहीं हुई थी। अब दिल्ली सरकार का एंटी करप्शन ब्यूरो एक बार फिर इस मामले की जांच कर रहा है।

सूत्रों के अनुसार अब दिल्ली सरकार ने मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी है कि क्या 2012 के इस घोटाले में एलजी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है ? मुख्य सचिव से पूछा गया है कि, क्या एलजी के खिलाफ आईपीसी की धारा 217 और 218 के तहत केस चलाया जा सकता है ? इन धाराओं के तहत यदि कोई सरकारी अधिकारी अपने पद का दुरूपयोग करके किसी को सजा से बचाता है या उसकी सजा को कम करवाता है तो उस पर 2 साल की सजा के साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक चूँकि सीबीआई की रिपोर्ट में उल्लेखित है कि एलजी ने गलत तरीके से इस केस बंद करने के लिए कहा था, इसलिये उन पर उक्त धाराओं के अंतर्गत मामला बनता है ।

उल्लेखनीय है कि इस सीएनजी फिटनेस घोटाले में सीबीआई ने उस समय के मुख्य सचिव डी एम सपोलिया, तत्कालीन परिवहन सचिव आरके वर्मा और आईएएस अधिकारी पी के त्रिपाठी के खिलाफ केस चलाने की अनुमति मांगी थी, जिसे भी एलजी ने खारिज कर दिया था।

समान मामलों के पुराने अनुभव और नए रंग

हाँ, यदि कोई राज्य सरकार किसी जांच एजेंसी के जरिए राष्ट्रपति से अनुमति प्राप्त कर लेती है तो राज्यपाल या उपराज्यपाल से भी पूछताछ हो सकती है। अतीत में इकबालसिंह, बुटासिंह, एमके नारायणन व बी वी वांचू के मामलों में ऐसा हो चुका है। इसलिये अब यदि दिल्ली में ऐसा होता है तो सीएम एवं एलजी के बीच के तनाव का मामला केवल व्यक्तिगत अहम का टकराव नहीं रह जाएगा बल्कि इसमें भृष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का पेंच एवं संविधान की भावना के पेंच भी जुड़ जायेंगे । इससे यह लड़ाई निर्णायक होगी और इसके दुरगामी परिणाम भी होंगे । 

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