गिलोय प्रकृति द्वारा मानव को दिया गया अद्भुत वरदान है| धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत निकला था, तब अमृत कलश से कुछ बूँद अमृत भूमि पर गिरा , जंहा जंहा ये बूंदे गिरी वही पर इस दिव्या औषधि की बेल प्रकट हुई, इसलिये इस औषधि को अमृत वल्ली अर्थ अमरता की बेल भी कहा जाता है| किवंदती की माने या न माने पर गिलोय के प्राणरक्षक गुण इसकी दिव्यता का अनुभव स्वयं करवा देते है|
पिछले दिनों जब स्वाइन फ्लू का प्रकोप बढ़ा तो लोग आयुर्वेद की शरण में पंहुचे। इलाज के रूप में गिलोय का नाम खासा चर्चा में आया। गिलोय या गुडुची, जिसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया है का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाइयों में एक खास तत्व के रुप में किया जाता है।
इसमें सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। गिलोय के इस्तेमाल से सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता है। इसे नीम और आंवला के साथ इस्तेमाल करने से त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा और सोराइसिस दूर किए जा सकते हैं। इसे खून की कमी, पीलिया और कुष्ठ रोगों के इलाज में भी कारगर माना जाता है| ये किसी भी तरह का बुखार उतरने की रामबाण औषधि है|