मैंने गांधी को क्यों मारा : गोडसे
मैंने गांधी को क्यों मारा : गोडसे
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नईदिल्ली। 'नाथूराम गोड़से' देश की युवा और वृद्ध होती पीढ़ी इस नाम से परिचित होगी। मगर शायद जो देश की भावी पीढ़ी है वह इस शख्स के बारे में नहीं जानती होगी। इस व्यक्ति को राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या करने के लिए जाना जाता है। अब ऐसे में सभी के मन में एक ही सवाल आता है कि -  'आखिर गोडसे ने गांधी को क्यों मारा।?'

नाथूराम गोडसे के ये शब्द आज भी यूट्यूब पर प्रसारित हुए वीडियो में गूंजते नज़र आते हैं, तो कहीं किसी डिजीटल प्रसारण माध्यम में पढ़ने को मिल जाते हैं कि - 'मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसमर्पण कर दे और उनकी सनक, मनमानी  और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये, वे अकेले ही प्रत्ये वस्तु और वस्तु के निर्णायक थे। महात्मा गांधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे। महात्मा गांधी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए  हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गांधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिंदुओं की कीमत पर किए जाते थे।'

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा में गोलियां चलाकर हत्या कर दी। नाथूराम गोड़से पर गांधी की हत्या का न्यायालयीन मामला चला और फिर उसे 15 नवंबर 1949 को मृत्यु दंड दे दिया गया। गोडसे को पंजाब की अंबाला जेल में फांसी की सजा दी गई।

नाथूराम गोडसे की मौत के साथ यह विवाद गहरा गया कि आखिर महात्मा गांधी की हत्या गोडसे ने क्यों की। कुछ लोगों ने गोडसे की निंदा की तो कुछ लोगों ने गोडसे को महान बताकर उसके मंदिर तक बना दिए, और वहां गोडसे का पूजन किया जाने लगा। कथित तौर पर आरएसएस पर आरोप लगते रहे और उसे आरएसएस का सदस्य कहा गया मगर आरएसएस ने स्पष्ट किया कि वह आरएसएस का कार्यकर्ता जरूर रहा था, मगर बाद में आरएसएस से उसका कोई संबंध नहीं था।

बहरहाल आज भी यह विवाद राजनीतिक रूप से गहराता रहता है कि आखिर गोडसे ने गांधी को क्यों मारा। नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को भारत के महाराष्ट्र में हुआ था। पुणे के समीप बारामती में उनका जन्म चित्तपावन मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम विनायक वामनराव गोडसे था। जबकि माता लक्ष्मी गोडसे थीं। उनके पिता एक पोस्ट आॅफिस के कर्मचारी थे। नाथुराम गोडसे आरएसएस में शामिल हो गए. उन्होंने 1930 में संघ छोड़ दिया।

इसके बाद उन्होंने अखिल भारतीय हिंदू महासभा की सदस्यता ली, वे पत्रकार भी थे। उन्होंने हिंदू राष्ट्र नामक समाचार पत्रों का संपादन किया था।  गोडसे ने वर्ष 1940 में हैदराबाद के निजाम द्वारा लगाए गए जजिया कर का विरोध किया। भारत विभाजन के बाद नाथूराम गोडसे के विचार क्रांतिकारी हो गए। उन्हें महात्मा गांधी की भूमिका पसंद नहीं आई। जिसका परिणाम महात्मा गांधी की हत्या के तौर पर सामने आया।

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