कड़वा है लेकिन सच है: बचपन में लड़ते थे माँ-बाप के लिए, बड़े होने पर फेंक देते हैं घर से बाहर
कड़वा है लेकिन सच है: बचपन में लड़ते थे माँ-बाप के लिए, बड़े होने पर फेंक देते हैं घर से बाहर
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आज का दौर कलियुग कहा जाता है। यह युग चार युगों की अवधारणा में चौथा और अंतिम युग है। इससे पहले तीन युग आकर चले गए, जो सत, त्रेता, द्वापर रहे थे। वैसे कलियुग में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिससे इस युग को अच्छा तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता। आज अपराध बढ़ रहे हैं, दुर्घटनाएं अधिक हो रही हैं और सबसे बड़ी और हैरान करने वाली बात बच्चे अपने माता-पिता के ही नहीं हो रहे हैं। पुराने समय में जब बेटा पैदा होता था तो पिता कहते थे कि 'यह हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा'। अब जब बेटा पैदा होता है तो माता-पिता के मन में एक ख्याल होता है जो यह है कि, 'बड़े होकर कहीं बेटा हमे वृद्धाश्रम में तो नहीं छोड़ आएगा'। इस दौर में बच्चे अपने माता-पिता की दुर्दशा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आज के समय में आपको माता-पिता घरों में कम और वृद्धाश्रम में अधिक मिलेंगे। हर शहर में कई वृद्धाश्रम हैं जहाँ बच्चे अपने माता-पिता को छोड़ आते हैं। इसके पीछे कई कारण माने जाते हैं और आज हम उन्ही कारणों के बारे में बात करने जा रहे हैं।

पत्नी - कई किस्सों में यह सुनने को मिलता है कि माता-पिता को बेटे ने केवल इस वजह से घर से निकाल दिया क्योंकि बहू को परेशानी हो रही थीं। बहू ही वह होती है जिसके चलते बेटा अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम छोड़ आता है। चलिए माना बहू तो दूसरे घर से आई है लेकिन बेटे को क्या हो गया...? बेटा कैसे ऐसा कर सकता है। वो माँ जिसने उसे 9 महीने अपने पेट में पाला और उसके बाद उसके दुनिया में आने पर उसका ख्याल रखा, उसे बड़ा किया, उसकी हर ख्वाहिश को पूरा किया, उसके लिए रात-रातभर नहीं सोई। कैसे कोई बेटा ये सब भूलकर दो दिन की आई लड़की (पत्नी) के लिए अपनी माँ को भूल जाता है। वो पिता जिसने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने बेटे के लिए अपना सब कुर्बान कर दिया। बेटे के लिए पिता ने रात में ऑफिस में काम किया, दिन में काम किया, अपनी ख्वाहिशों का गला दबाकर बेटे को विदेश भेजा, उसे पढ़ाया और उसने जो माँगा उसे वो दिया लेकिन जिस बेटे के लिए पिता ने इतनी कुर्बानियां दी उस बेटे ने क्या किया....? पिता को घर से बाहर फेंक दिया। कैसे कोई इतना निर्दयी हो सकता है। यह एक गंभीर विषय है इस पर कभी सोचकर देखिये।

बदलती सोच- आजकल के बच्चे भले ही मिडिल क्लास या गरीब परिवार में जन्म ले लेकिन उनकी सोच बड़ी हाई-फाई होती है। सब अमीरों वाले सपने देखते हैं। इसी के चलते बच्चे अपने माता-पिता को कोई अहमियत नहीं देते। दिन-रात काम करने वाले माता-पिता को बच्चे अपनी नजरों में मजदुर मानने लगते हैं। वह कभी-कभी बड़े होने के बाद उन्हें नौकर बना देते हैं और अपने घर का सारा काम उन्ही से करवाते हैं। जिस बुढ़ापे में बच्चों को माता-पिता का सहारा बनना चाहिए उस बुढ़ापे में वह उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। माता-पिता पाई-पाई जुटाकर अपने बच्चे को विदेश पढ़ने भेजते हैं लेकिन वहां से आने के बाद तो बच्चा पूरी तरह बदल जाता है। उसे लगता है उसके माता-पिता उसके लायक नहीं, वह कहाँ ऊँचे औदे का और उसके माता-पिता कहाँ मिडिल क्लास सोच वाले। बच्चे अपने आपको दूसरों के सामने अच्छा दिखाने के लिए अपने गरीब माता-पिता के साथ बाहर नहीं जाते। वो सोचते हैं अगर हम इन्हे मॉल, सिनेमा हॉल, पार्टी, पब, रेस्टोरेंट में ले गए और वहां इन्हे ढंग से खाना, घूमना, बोलना ना आया तो हमारी बेइज्जती होगी। आज बच्चों की सोच बदलती जा रही है और इसी वजह से भी कई बार वह अपने-माता पिता को घर से बाहर निकाल फेंकते हैं जैसे दूध से मक्खी निकाली जाती है।

वसीयत- यह भी एक मुख्य कारण हैं। वैसे केवल छोटे, गरीब घरों में यह किस्से नहीं नजर आते बल्कि बड़े-बड़े घरों में भी यह किस्से दिखाई देते हैं। अमीरों के घरों में भी माता-पिता को बंटते हुए देखा जा सकता है। अमीर घरों में बेटे पहले तो वसीयत लिखे जाने तक साथ रहते हैं और अपने माता-पिता को बहुत अहमियत देते हैं लेकिन जैसे ही वसीयत लिखने की बारी आती है और वह सभी में बराबर बंट जाती है तो बेटों में खींच-तान शुरू हो जाती है। सभी माता-पिता को रखने से मना करने लगते हैं और अंत में यह निर्णय निकलता है कि इन्हे वृद्धाश्रम में छोड़ आया जाए। वाकई में यह किस्से कभी-कभी दिल को दहला देते हैं।

बच्चों को समय न देना- एक सबसे बड़ा कारण यह भी है। आज माता-पिता अपने बच्चों को समय देने में कहीं ना कहीं पीछे हैं। सभी पैसों के पीछे भागते नजर आते हैं, सभी को केवल कमाना है। इन्ही पैसों के चक्कर में माता-पिता अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं और वह बिगड़ते चले जा रहे हैं। आजकल माता-पिता की खुद आपस में ही नहीं बनती। दिन पर दिन तलाक बढ़ रहे हैं लेकिन यह गलत है। आज के दौर में अगर बच्चे रोते हैं तो उन्हें चुप करवाने के लिए मोबाइल फ़ोन दे दिया जाता है। बच्चे अगर खेलना चाहते हैं तो भी उन्हें मोबाइल ही दिया जाता है। आज छोटे-छोटे बच्चों के पास मोबाइल है और उनसे पीछा छुड़वाने के लिए माता-पिता उनके मोबाइल में नेट का रीचर्ज करवा देते हैं ताकि वह व्यस्त रहें। मोबाइल देने के बाद तो माता-पिता यह भी नहीं देखते कि आखिर बच्चा देख क्या रहा है, कर क्या रहा है। बच्चे को बचपन से ही अगर यह सिखाया जाए कि उनके लिए उनके माता-पिता की क्या अहमियत है तो शायद बच्चों के लिए सबसे अहम उनके माता-पिता ही हो। बच्चों में बचपन से ही माता-पिता के पैर छूने से लेकर पैर दबाने तक की आदत डालनी चाहिए ताकि वह माता-पिता को भगवान तुल्य माने और उन्हें कभी न भूले।

धार्मिक कहानियों से चाहिए सीखना- श्रवण कुमार की कहानी तो आप सभी ने पढ़ी, सुनी या देखी होगी। एक ऐसा बेटा जो बुढ़ापे में अपने माता-पिता का सहारा बना। बुढ़ापे में श्रवण कुमार ने दो टोकरी में अपने माता-पिता को बैठाया और एक डंडे के सहारे उन्हें अपने कंधे पर टांगकर तीर्थ यात्रा करवाने के लिए निकल पड़े। श्रवण कुमार जैसे बेटे आज कलियुग में बहुत कम दिखते हैं। भगवान श्री राम के बारे में आप सभी ने सुना होगा। वह एक ऐसे आज्ञाकारी बेटे बने जिन्होंने अपने पिता के कहने पर सारा राज-पाठ छोड़ दिया और निकल पड़े वनवास के लिए। श्री कृष्णा को ले लीजिये जिन्होंने अपने माता-पिता को कंस के कारावास से छुड़वाने के लिए उसे मार दिया लेकिन वह खुद को पालने वाले माता-पिता को भी नहीं भूले। इस तरह आपको कई ऐसी कहानियाँ मिल जाएंगी जिनसे आप सीख ले सकते हैं कि अपने माता-पिता को कभी नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि जीवनभर उनके साथ रहते हुए उनकी सेवा करनी चाहिए।

माता-पिता को दुःख देने वाले को मिलता है फल- कलियुग में जो बच्चे अपने माता-पिता को दुःख, दर्द, तकलीफ देते हैं उन्हें इसका फल भी मिलता है। गरुड़ पुराण के अनुसार जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ गलत व्यवहार करते हैं उन्हें नर्क में दंड मिलता है। दंड के रूप में उन्हें गर्म और तपती ज़मीन पर दौड़ाया जाता है और वैसा ही व्यवहार किया जाता है जैसा उन्होंने अपने माता -पिता के साथ किया होता है।

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