एक अहम मामले पर सुनवाई करने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि काम में लापरवाही, गलत फैसला और भूलबस हुई गलती अगर किसी दुर्भावना के बिना होती है तो उसे दुराचार नहीं कहा जा सकता. कोर्ट ने इसी आधार पर एक कस्टम अधिकारी को लापरवाही के लिए दोषी करार देने वाले ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज कर दिया. जस्टिस रंजीत मोरे और जस्टिस एनजे जमादार की पीठ ने कस्टम विभाग के कर्मचारी सत्येंद्र सिंह गुर्जर की याचिका पर पिछले हफ्ते सुनवाई की.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गुर्जर ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के नवंबर 2017 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसे सिविल सेवा नियमों के तहत लापरवाही का दोषी ठहराया गया था. गुर्जर के खिलाफ गलत रिपोर्ट बनाकर 40 पैकेज वाली एक खेप को क्लीनचिट देने के आरोप में 2006 में जांच शुरू हुई. खेप के मालिक का दावा था कि इसमें बच्चों के पाउडर और टूथब्रश थे जबकि डीआरआई की जांच में महंगी घड़ियां मिलीं.
इस अलावा गुर्जर की वकील देवांशी सिंह और सुजाय कांटावाला ने पीठ को बताया कि खेप पास करने में गुर्जर का इरादा आयातक को लाभ पहुंचाना या विभाग को नुकसान पहुंचाना नहीं था. उन्हें सभी बिल दिखाए गए थे जिसके आधार पर ही क्लीनचिट दी गई. पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि किसी दुर्भावना के तहत काम में लापरवाही को ही दुराचार माना जा सकता है. अगर अनजाने में बिना किसी इरादे के गलती होती है तो उसे दुराचार नहीं मान सकते. इस मामले में भी याचिकाकर्ता ने गलती तो की है लेकिन इसके पीछे उनका कोई इरादा नहीं था. इसलिए इसे दुराचार नहीं ठहराया जा सकता.
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