सैकड़ों लोग नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर में दर्शन कर रहे थे और अचानक उन्हें आसपास की चीजें हिलती नज़र आईं। लोग खुद का संतुलन खो बैठे। इतने में ही शोरगुल हुआ और सभी बाहर की ओर निकलने लगे। पलभर में आंखों के सामने चीजें ऐसी हिल रही थीं जैसे हम किसी कैमरे को जोर - जोर से हिलाकर उसमें विजुअल्स रिकाॅर्ड कर रहे हों। पलभर में उंचे भवन ताश के पत्तों की तरह बिख गए। कहीं धूल का गुबार दिखने लगा। यह खतरे की घंटी थी। जी हां, खतरे की घंटी। हिमालय की चोटियां रह - रहकर हिल रही थीं। ऐसा लग रहा था मानों पहाड़ को किसी ने अपने हाथों में लेकर झकझोर दिया हो।
दुनिया के सबसे उंचे शिखर एवरेस्ट पर, मानव के हौंसले का डंका बजाने के लिए निकले पर्वतारोहियों की आंखों के सामने बड़ी - बड़ी चट्टानें हिमखंडों के साथ बेहद गहराई में नीचे की ओर गिरने लगीं। हिमालयी क्षेत्र में इससे उठने वाली विनाशकारी गूंज उन्हें मानव के विनाश की ओर बढ़ते कदमों के प्रति चेता रही थी। जी हां, सदियों पहले जिस हिमालय को हम भारतवासी अपना रक्षक कहते थे वही अब बूढा होता जा रहा है। मानव द्वारा प्रकृति से किए जाने वाले खिलवाड़ का एक भयावह परिणाम सामने आने को है।
अपनी जिद के आगे हम जिस हिमालय को झुकाना चाहते थे वह आज भी अपना सिर उंचा किए खड़ा है लेकिन बिना सोचे समझे आसमान में उड़ने की ख्वाहिश मानवों को अंततः मिट्टी में मिला रही है। हाल ही में विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें कहा गया है कि धरती पर पाई जाने वाली यूरेशियाई प्लेट भारतीय प्लेट से टकरा रही है लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण इस तरह की भूगर्भीय हलचल तेजी से हो रही है। टेक्टोनिक प्लेट में होने वाले टकराव से हिमालय का क्षेत्र तेजी से खिसक रहा है। हिमालय लगातार उंचा होता जा रहा है लेकिन इसके आसपास का धरातल नीचे की ओर जा रहा है। यह एक चिंता की बात है।
हाईड्रो पाॅवर प्रोजेक्ट से बढ़ा खतरा
हिमालय की गोद में बसे केदारनाथ, बद्रीनाथ और ऐसे ही पर्वतीय क्षेत्रों को हजारों लोगों के आवागमन के लिए सुगम बनाने की चाहत में इसकी भौगोलिकता नष्ट की जा रही है। यहां पर सड़क बनाकर कुछ क्षेत्र में वाहनों के आवागमन को अनुमति देने से पहाड़ की चट्टानों पर लगातार दबाव बन रहा है और ये खिसकती जा रही हैं। आवास और अन्य सुविधाऐं प्रदान करने से यहां की नैसर्गिकता प्रभावित हो रही है। मानव प्रकृति से अनुकूलन करना बहुत पहले ही छोड़ चुका है, अब तो वह प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने में लगा है।
ऐसे में परिस्थिति उसके हाथ से रेत की तरह फिसलती जा रही है। बाद में वह असहाय और निरीह होकर प्रकृति की शरण में जाने को मजबूर है। विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्र में चलने वाले हाईड्रो पाॅवर प्रोजेक्ट कहीं से भी अनुकूल नहीं हैं। इन क्षेत्रों में धड़ल्ले से हाईड्रो पाॅवर प्रोजेक्ट्स का निर्माण किया जा रहा है। जिसके लिए सारे नियमों को ताक पर रख दिया गया है। ऐसे में पहाड़ पर जलराशि का दुगना दबाव पड़ रहा है। क्षेत्र का वातावरण भी असंतुलित हो गया है।
पिघल रहे हैं ग्लेशियर
ग्लोबल वार्मिंग और मानवीय क्रियाकलापों के कारण न केवल गंगोत्री ग्लेशियर बल्कि हिमालय क्षेत्र के कई ग्लेशियर पिघल रहे हैं। सदा बर्फ की चादर में लिपटे रहने वाले हिमालय पर अब काली चट्टानें साफ नज़र आ रही हैं। हालात ये हैं कि इस दुर्गम पर्वत के कुछ हिस्सों से बर्फ नदारद हो चुकी है। ग्लेशियर पिघलने का असर समुद्र तल और यहां से निकलने वाली नदियों पर भी पड़ना स्वाभाविक है। साधुओं की तपस्थली और बाबा भोलेनाथ का धाम माना जाने वाला यह हिमालय मानवीय हलचलों के कारण अपनी शांतता खोने लगा है। विशेषज्ञ इस ओर से धरती की ओर बढ़ने वाले खतरे का अंदेशा पहले ही जता चुके हैं। कहा जा रहा है कि मानव ने अपनी विकासवादी सोच के साथ लगाई जाने वाली अंधी दौड़ को अब नहीं रोका तो फिर शायद पछतावे के अलावा किसी के हाथ कुछ नहीं लगेगा।