बचपन से लेकर बच्चों के होश संभालने तक उनके खाने-पीने, पहनने, स्कूल जाने-ले आने तक की जिम्मेदारी मां अच्छे से निभाती है. यहां तक कि पेरेंट्स मीटिंग में जाना हो या फिर स्कूल फंक्शन की तैयारी और तो और होमवर्क कराने की रिस्पॉन्सबिलिटी भी उनके ऊपर ही होती है जिसे बिना घबराए और थके हुए वो आराम से उठाती रहती हैं. लाइफ का जरूरी चैप्टर, रिस्पॉन्सबिलिटी, कैसे निभाते हैं इसे मां से ज्यादा अच्छा और आसानी से कोई नहीं सिखा सकता.
मां अपने बच्चों से ज्यादा शायद ही किसी से प्यार करती है. सबसे खास बात है कि ऐसा सिर्फ इंसानों में ही नहीं जानवरों के साथ भी देखने को मिलता है. बंदर, हाथी, कुत्ते से लेकर शेर, चूहे तक के साथ इस प्यार को देखा जा सकता है. बचपन से लेकर बड़े होने तक मां के केयरिंग नेचर में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आता. वो आज भी अपने बच्चों को फोन करके सबसे पहले यही पूछती है खाना खाया या नहीं, तबियत ठीक है या नहीं, किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं? फ्यूचर लाइफ के लिए बहुत ही जरूरी केयरिंग नेचर को मां से सीखा जा सकता है.
बड़ों के साथ कैसे पेश आना है और बच्चों के साथ कैसे बात करनी है इन सबकी सीख सबसे पहले घर में मौजूद मां रूपी टीचर से ही मिलती है. उनकी हर कोशिश करती है आपको सिर्फ पढ़ा-लिखा कर ही नहीं बल्कि बाकी कामों में भी अनुशासन सिखाकर एक अच्छा इंसान बनाने की. जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं ये सारी चीजें आदतों में शुमार होते जाती हैं जो प्रोफेशनल से लेकर पर्सनल लाइफ तक में बहुत ही काम आती हैं. जिंदगी की यह सिख भी मां से सीखने को मिलती है.