नई दिल्ली: केंद्र सरकार महिलाओं की तकलीफ को ध्यान में रखते हुए मैटरनिटी लीव बढ़ाने पर विचार कर रही है। पहले से तय 12 हफ्ते के लीव को बढ़ाकर 26 हफ्ते करने का प्रोपोजल बनाया जा रहा है। इस कड़ी में लेबर युनियन ने ट्रेड युनियन से मुलाकात की, जहाँ मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, 1961 के अमेंडमेंट बिल को लेकर भी चर्चा हुई।
अभी के नियम के अनुसार कोई भी महिला डिलिवरी के 6 हफ्ते पहले और डिलीवरी के 6 हफ्ते बाद तक छुट्टी ले सकती है। मंत्रालय इस उद्देश्य से एक्ट में बदलाव करना चाह रही है, ताकि इसका फायदा गोद लेने वाली मांओ को भी मिले। सरकार मैटरनिटी लीव और उस दौरान दिए जाने वाले कम्पेनसेशन पर अपना तर्क-वितर्क पूरा कर चुकी है। अब इंटर-मिनिस्ट्रियल कंसल्टेशन के लिए प्रपोजल भेजा जाएगा। यह प्रपोजल महिला विकास मंत्री मेनका गांधी ने रखा है।
इस बारे में उन्होने लिबर मिनिस्ट्री से भी बात कर ली है। वुमन मिनिस्ट्री का कहना है कि मां बनने वाली एम्प्लॉईज को ज्यादा छुट्टी देने से इसका सीधा असर जन्म लेने वाले बच्चे पर होगा। बच्चे की ग्रोथ और उसके न्यूट्रिशनल लेवल पर पॉजिटिव असर पड़ेगा। मोदी सरकार लेबर रिफॉर्म के इरादे से भी इस प्रपोजल पर विचार कर रही है। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लेबर रिफॉर्म का स्टैंडर्ड सेट करने में मदद मिलेगी।
लेकिन इस पूरे प्रपोजल में अड़चन यह है कि सरकार इस मसले पर उलझ गई है। सवाल ये उठ रहे है कि लंबी छुट्टी के बाद वापस काम पर आने से महिला कर्मी का वर्क पोटेंशियल कम हो जाता है। इस बात को लेकर उसी कंपनी में काम करने वाली महिलाएँ विरोध जता सकती है। प्रपोजल में इस बात का भी जिक्र है कि जो महिलाएँ अपने बच्चे को पालनाघर में लाएँगी उन्हें लंच से पहले और लंच के बाद अतिरिक्त 15 मिनट का समय दिया जाएगा।