30 अप्रैल, 1908 का दिन मुजफ्फरपुर में दो नवयुवक किसी का इंतजार करते हुए रास्ते के एक ओर खडे़ थे ताकि उन्हे कोई देख न ले तभी उन्होने देखा कि एक बग्घी उनकी ओर तेजी से आ रही है। उन यूवको ने देखा कि उस बग्घी का रंग लाल है जिसका मतलब था अब वो काम करने का समय आ गया है जिसके लिए वो वहां कब से खड़े थे। बग्घी के सामने आते ही उन्होने अपने पास छुपाकर रखे बम को निकाल कर उस बग्घी पर फेंका। ऐसा होते ही एक जोरदार धमाका हुआ और उस बग्घी के टुकड़े हवा में उड़ गए। दोनो युवक वहां से भाग निकले। ये दोनों युवक थे खुदीराम बोस तथा प्रफुल्ल चाकी। वे दोनो इस विश्वास से भाग निकले कि किंग्सफोर्ड को मारने में वे सफल हो गए हैं। खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद 25 मील तक भागने के बाद एक रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। खुदीराम बोस पर पुलिस को संदेह हो गया और पूसा रोड रेलवे स्टेशन पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। अपने को घिरा देख प्रफुल्ल चंद खुद को गोली मारकर शहिद हो गए पर खुदीराम पकड़े गए।
उन्हे इस बात से डर नहीं लगा। खुदीराम बोस को जेल में डाल दिया गया और उन पर हत्या का मुकदमा चला। अपने बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने तो किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया था। लेकिन, इस बात पर बहुत अफसोस है कि निर्दोष कैनेडी तथा उनकी बेटी गलती से मारे गए। बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस के यहां 3 दिसंबर 1889 ई. को खुदीराम बोस ने जन्म लिया। खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था। उसके बाद उनकी बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया था। बंगाल विभाजन (1905 ई.) के कारण खुदीराम बोस स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे।
सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया था। खुदीराम ने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और देश प्रेम के कारण एक क्रांतिकारी बन गये। इसके लिए वे रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदेमातरम पंपलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुलिस ने 28 फरवरी, सन 1906 ई. को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए बोस को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन बोस पुलिस के शिकंजे से भागने में सफल रहे। 16 मई, सन 1906 ई. को एक बार फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन उनकी आयु कम होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था। 6 दिसंबर, 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस भी शामिल थे। किंग्सफोर्ड चीफ प्रेंसीडेसी मजिस्ट्रेट बहुत सख्त और क्रूर अधिकारी था। वह अधिकारी देश भक्तों, विशेषकर क्रांतिकारियों को बहुत कड़ी सजा देता था। क्रांतिकारियों ने उसे मार डालने की ठान ली थी। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रपुल्ल चाकी को चुना गया।
एक दिन वे दोनों मुजफ्फरपुर पहुंच गए। वहीं एक धर्मशाला में वे आठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने किंग्सफोर्ड की दिनचर्या तथा गतिविधियों पर पूरी नजर रखी। उनके बंगले के पास ही क्लब था। अंग्रेजी अधिकारी और उनके परिवार के लोग शाम को वहां जाते थे। 30 अप्रैल, 1908 की शाम किंग्स फोर्ड और उसकी पत्नी क्लब में पहुंचे। रात्रि के साढ़े आठ बजे मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठकर क्लब से घर की तरफ आ रहे थे। उनकी बग्घी का रंग लाल था और वह बिल्कुल किंग्सफोर्ड की बग्घी से मिलती-जुलती थी। खुदीराम बोस तथा उसके साथी ने किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया जिससे उसमें सवार मां-बेटी की मौत हो गई। गिरफ्तार के बाद 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें प्राण दंड की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त, 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। मुजफ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि ‘खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निडर होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़ा था।’ खुदीराम बोस ने अपना जीवन देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया।