आगरा : कहानियों में श्रवण कुमार का नाम तो सबने होगा पर कलियुग में हम श्रवण कुमार के जैसा बेटा होने की कामना कर सकते है, लेकिन वर्तमान समय में यह नामुमकिन सा लगता है। लेकिन जबलपुर के रहने वाले 48 वर्षीय कैलाश गिरी कलियुग के श्रवण कुमार बनकर इन सारी बातों को दरकिनार कर रहे है। वो पिछले 20 सालों से अपनी मां को एक कावड़ी पर बिठाकर देश के अलग-अलग तीर्थ स्थानों की यात्रा कर रहे है। केलाश की मां नेत्रहीन है, उऩकी उम्र 92 साल हो चली है।
दरअसल कैलाश की इच्छा थी कि वो चारों धाम की यात्रा पैदल ही करें। लेकिन उनकी मां के लिए यह मुमकिन नहीं था, तो कैलाश उन्हें कंधे पर बिठाकर निकल गए। बीते 20 सालों में उन्होने 36,582 किमी की यात्रा तय की। फरवरी 1996 से यह यात्रा शुरु है। अब यह अपने आखिरी चरण में पहुंच चुका है। मंगलवार को कैलाश अपनी मां को लेकर आगरा पहुंचे। जब सफर की शुरुआत हुई थी, तब वो 28 साल के थे।
कैलाश बतातें है कि जब वो 14 साल के थे, तब वो एक पेड़ से गिर गए थे और तब उनकी मां ने उनकी दिन रात सेवा की। मां ने मन्नत मांगी थी कि वो चारों धाम की यात्रा करेंगी। मुझे लगा मां की मन्नत पूरी करना मेरा धर्म है। उनके सफर की शुरुआत रोजाना सुबह 6.30 बजे होती है और सूर्यास्त होने पर खत्म होती है।
उन्होने बताया कि इस देश में बहुत से अच्छे लोग है, जो निःस्वार्थ भाव से सेवा करते है। लोगों द्वारा दी गई मदद और खाने वो अपना गुजारा कर लेते है। कैलाश की मां को अपने बेटे पर गर्व है। कैलाश ने पैदल ही अपनी मां को नर्मदा परिक्रमा, काशी, अयोध्या, चित्रकूट, रामेश्वरम, तिरुपति, जगन्नाथ पुरी, गंगा सागर, बासुकी नाथ, जनकपुर धा, केदरानाथ, हरिद्वार, ऋषिकेश, द्वारका, नागेश्वर और महाबलेश्वर की यात्रा करा चुके है।