अवैध खनन की CBI जांच रुकवाने गई थी झारखंड सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया इंकार, जानिए मामला ?
अवैध खनन की CBI जांच रुकवाने गई थी झारखंड सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया इंकार, जानिए मामला ?
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रांची: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (3 मई 2024) को झारखंड के साहिबगंज जिले के निम्बू पहाड़ी में कथित अवैध खनन की चल रही केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले को 8 जुलाई से शुरू होने वाले सप्ताह में आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी को ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामले में आरोप पत्र दाखिल करने से रोक दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि, "जांच पर कोई रोक नहीं होगी, लेकिन कोई आरोप पत्र (अंतरिम रूप से) दायर नहीं किया जाएगा और तब तक ट्रायल कोर्ट को कोई अंतिम रिपोर्ट नहीं दी जाएगी।" उल्लेखनीय है कि, झारखंड सरकार ने मामले की CBI जांच के खिलाफ अपनी याचिका खारिज करने के झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था। राज्य की कांग्रेस-JMM गठबंधन सरकार ने याचिका में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को चुनौती देते हुए उल्लेख किया था कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 के तहत CBI द्वारा जांच के लिए राज्य सरकार से कोई सहमति नहीं ली गई थी। हालांकि, राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका को झारखंड उच्च न्यायालय ने फ़रवरी में ही खारिज कर दिया था, जिससे CBI को जांच करने की अनुमति मिल गई थी। 

बता दें कि CBI ने उच्च न्यायालय के एक आदेश के आधार पर ही मामले की जांच शुरू की थी, जिसमें केंद्रीय एजेंसी को पिछले साल अगस्त में अवैध खनन के आरोप की प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया गया था। इससे पहले, CBI ने साहिबगंज के निम्बू पहाड़ी पर अवैध खनन मामले में एक प्रमुख व्यक्ति और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आरोपी पंकज मिश्रा से जुड़े कई परिसरों पर छापेमारी की थी, जिसके माध्यम से ED के निष्कर्षों के अनुसार अवैध रूप से 1000 करोड़ रुपये कमाए गए थे।

दिसंबर 2023 में CBI टीम द्वारा की गई छापेमारी में कई आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद हुए थे। हाई कोर्ट के आदेश के बाद शुरू की गई प्रारंभिक जांच के निष्कर्षों के आधार पर एजेंसी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने के बाद CBI द्वारा की गई छापेमारी इस मामले में अपनी तरह की पहली छापेमारी है। बता दें कि ED निम्बू पहाड़ी पर अवैध खनन के सिलसिले में मनी लॉन्ड्रिंग मामले की भी जांच कर रही है।  ED ने साहिबगंज जिले में मामले में दर्ज एक FIR के आधार पर मामले की जांच शुरू की थी। इससे पहले, एजेंसी के अधिकारियों ने इस साल जनवरी में मामले के सिलसिले में सरकारी अधिकारियों और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी सहयोगियों से जुड़े लगभग एक दर्जन स्थानों पर भी छापेमारी की थी।

तब यह बताया गया था कि ED की अलग-अलग टीमों ने साहिबगंज के पुलिस उपाधीक्षक (DSP), राजेंद्र दुबे, साहिबगंज के उप कलेक्टर (DC), रामनिवास यादव, सीएम हेमंत सोरेन के मीडिया सलाहकार, पिंटू उर्फ ​​अभिषेक प्रसाद और अन्य से जुड़े परिसरों पर छापेमारी की। गौरतलब है कि आर्थिक खुफिया एजेंसी ने भी मामले से संबंधित 25 से अधिक स्थानों पर छापेमारी की थी, जिसके बाद मिश्रा को मामले के अन्य प्रमुख आरोपियों के साथ वर्ष 2022 में गिरफ्तार किया गया था। ईडी ने नवंबर 2022 में पूर्व सीएम हेमंत सोरेन को भी इसी मामले में तलब किया था। वैसे फ़िलहाल हेमंत सोरेन जमीन घोटाला मामले में जेल में हैं, उनकी कई जमानत याचिकाएं अदालत द्वारा ख़ारिज कर दी गईं हैं।   

निम्बू पहाड़ी पर अवैध खनन का मामला है क्या:-

यह मामला तब सुर्खियों में आया, जब साहिबगंज जिले के निवासी बिजय हांसदा ने अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पिछले ढाई साल से साहिबगंज के निम्बू पहाड़ी में पत्थर माफिया सरकारी अधिकारियों और प्रशासन की मिलीभगत से अवैध खनन कर रहे हैं। अपनी याचिका में, हांसदा ने आगे आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी सहयोगी पंकज मिश्रा सहित आरोपी, अर्थमूविंग मशीनों का उपयोग कर रहे थे और क्षेत्र में विस्फोट कर रहे थे। हांसदा ने यह भी आरोप लगाया था कि मिश्रा के खिलाफ उनकी शिकायत को अनसुना कर दिया गया, और जिला अधिकारियों द्वारा मिश्रा के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गई थी।

हालांकि, याचिका दायर करने के एक महीने बाद, हंसदा पिछले साल 12 सितंबर को मामले की सुनवाई के दौरान अपने बयान से पलट गए और दावा किया कि उन्होंने कभी भी निम्बू पहाड़ पर कोई अवैध खनन नहीं देखा और आरोपी पंकज मिश्रा ने उनके साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं किया। लेकिन तब तक हाई कोर्ट CBI जांच के आदेश जारी कर चुकी थी। बाद में, हंसदा ने मामले की प्रारंभिक जांच CBI से कराने के उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाय, लेकिन तब सुप्रीम कोर्ट अदालत ने तब उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। यहां यह बताना उचित होगा कि ED के अधिकारी अपने गवाह बिजय हांसदा को प्रभावित करने में साहिबगंज के पुलिस अधीक्षक (SP) नौशाद आलम की भूमिका की भी जांच कर रहे हैं। एजेंसी का कहना है कि, जिस बिजय हासंदा ने पहले कोर्ट में शिकायत की, फिर गवाह बने, वो अचानक अपने बयान से कैसे पलट गए और CBI जाँच रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी पहुँच गए। एजेंसी को संदेह है कि SP नौशाद आलम द्वारा सरकार के इशारे पर हासंदा को डराया धमकाया गया है। 

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