क्या यही 'सेकुलरिज्म' है ? RSS को रुट मार्च की अनुमति नहीं दे रही थी तमिलनाडु सरकार, मद्रास हाई कोर्ट ने सिखाया सबक
क्या यही 'सेकुलरिज्म' है ? RSS को रुट मार्च की अनुमति नहीं दे रही थी तमिलनाडु सरकार, मद्रास हाई कोर्ट ने सिखाया सबक
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चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार को धर्मनिरपेक्षता का एक मूल्यवान सबक सिखाया है। अदालत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को मार्च निकालने की अनुमति नहीं देने के खिलाफ DMK सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जवाब में न्यायमूर्ति जी. जयचंद्रन ने तमिलनाडु पुलिस को RSS के मार्च की अनुमति देने का निर्देश दिया। संघ ने 22 और 29 अक्टूबर को रैलियां आयोजित करने की मंजूरी मांगी थी, लेकिन तमिलनाडु पुलिस ने शुरू में इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।

मद्रास उच्च न्यायालय ने बताया कि राज्य पुलिस ने RSS के परमिट अनुरोधों के संबंध में निर्णय लेने में असामान्य रूप से लंबा समय लिया। अक्सर, ये फैसले तब तक रोके रखे जाते थे, जब तक मामला उच्च न्यायालय तक नहीं पहुंच जाता था, जिसके बाद अचानक अनुमति दे दी जाती थी। पुलिस ने अनुमति देने से इनकार करने के कारणों के रूप में मार्च मार्ग पर मस्जिदों और चर्चों की उपस्थिति के साथ-साथ संभावित यातायात भीड़ के बारे में चिंताओं का हवाला दिया था। हालाँकि, हाई कोर्ट ने ऐसे तर्कों को अनुचित बताते हुए दृढ़ता से खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि, क्या यही सेकुलरिज्म है ? यह तो हमारे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जिन आधारों पर अनुमति देने से इनकार किया गया, वे धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ थे। मार्ग में धार्मिक स्थलों या राजनीतिक संगठनों के कार्यालयों के आधार पर अनुमति देने से इंकार करना भारतीय संविधान की मूल भावना और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है। अदालत ने अब तमिलनाडु पुलिस को कार्यक्रम की समग्र शांति और व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए RSS मार्च के लिए अनुमति देने का निर्देश दिया है।

बता दें कि, यह पहली बार नहीं है जब RSS को अपने मार्च के लिए अनुमति प्राप्त करने से संबंधित मुद्दों का सामना करना पड़ा है। पिछले साल भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी जब संघ ने भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में रैलियां आयोजित करने की मांग की थी। उस समय भी तमिलनाडु कि एमके स्टालिन सरकार ने उस समय भी आपत्ति जताई थी, जिसके बाद RSS ने उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया था।

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