शास्त्रों में कहा गया है कि मासिक धर्म के चार दिनों में स्त्री अपवित्र रहती है। इस अवधि में महिलाओं को किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना एवं गृहस्थी के कार्यों से दूर रहना चाहिए. मनुस्मृति और भविष्यपुराण में यह भी कहा गया है कि इन चार दिनों में पति-पत्नी को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए साथ शयन नहीं करना चाहिए. अन्यथा परलोक और अगले जन्म में बहुत ही कष्ट का सामना करना पड़ता है.
मानव जीवन में तन से ज्यादा पवित्रता मन की होती है, धर्म ये नहीं कहता कि पीरियड्स के दौरान महिला अपवित्र हो जाती है, सबसे बड़ी पवित्रता तो अंतरात्मा की होना चाहिए. महिलाओं को इस समय में दूरी बनाने की धारणा समाज द्वारा ही बनाई गई है. दुरी बनाने का मुख्य कारण यह था की उस समय में उन्हें शारीरिक कष्टों से जूझना पड़ता है. उस दौर पर उन्हें बेहद आराम की आवश्यकता होती है. जो उन्हें अपने गृहस्थ के काम काज न करने से मिल सकती है, काम काज से दूर रखते हुए आज उन्हें धर्म -कर्म से दूर की भी धारणा को अपना लिया गया. जो मानव के इस समाज द्वारा प्रदत्त है.
यह धारणा अपनाने वाला उसी महिला समाज का ही निर्णय है. महिलाओं द्वारा ही सांसारिक आडम्बरों को अपना, टोटके और नुक्से निकालना, कोई भी नियम बना लेना है. ये सब आपके मन के विचार है. अब रही बात पवित्रता की, तो पवित्रता तो जरूरी नहीं की तन पवित्र हो. तभी मन पवित्र हो, कई बार हम अपने तन को बड़ी ही साफ सफाई के साथ सजाते सवारते है और भक्ति के मार्ग में निकलते है.
तो बहुत से लोगों का तो वहां भी मन नहीं लगता वे अपने इस सजे हुए तन को देख-देख कर प्रसन्न रहते है. अपने इस नाशवान शरीर को देख स्वयं को श्रेष्ट मानकर घमंड की भावना धारण कर लेते है, अब कहाँ की भक्ति उस वक्त तो उसे अब अपना शरीर ही दिखता है. भगवान को भी भूल जाते है . हम इस बात को मानते है की मानव को पवित्रता रखनी चाहिए उससे आध्यात्मिक ध्यान, संयम में सहायता मिलती है .पर यह जरूरी नहीं की महिलाओं को आये इस समय में भक्ति से वंचित किया जाए शारीरिक पवित्रता से क्या ध्यान तो मन की पवित्रता से होता है.
घर के मुख्य द्वार पर लगी Name plate नकारात्मक ऊर्जा का कारण भी हो सकता है
प्लाॅट खरीदने से पहले जान लें की वह लेने लायक है भी या नहीं
जरुरत से ज्यादा धन इंसान की बुद्धि भ्रष्ठ कर देता है
घर के किसी सदस्य को है अगर बड़ी बीमारी तो..