प्रेरक प्रसंग क्रोध का दमन - संत तुकाराम महाराज !
प्रेरक प्रसंग क्रोध का दमन - संत तुकाराम महाराज  !
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क्रोध का दमन - संत तुकाराम !

सत्रहवीं शताब्दी एक महान संत तुकाराम अत्यंत सरल और मधुर स्वाभाव के थे | वे गृहस्त थे और सांसारिक कामों को करते हुए भी भगवान् का नाम जप में लीन रहा करते |संत तुकाराम के जीवन में बहुत विकट परेशानियों के होने के बाद उन्होंने कभी संयम का त्याग नहीं किया, वरन हर परेशानियों को अत्यंत धैर्य पूर्वक मुस्कुराते समाधान तक लेकर आये । वे हर समय शांत रहते थे और दूसरों को भी शांत रहने का उपदेश देते थे।

एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वभाव से थोड़ा क्रोधी था। उनके समक्ष आया और बोला,गुरुदेव आप विषम परिस्थिति में भी इतने शांत और मुस्कुराते हुए कैसे रह पाते है | कृपया इसका रहस्य बताये |

तुकाराम जी बोले " मैं इसलिये ये सब कर पता हूँ की मुझे तुम्हारा रहस्य पता है "|

शिष्य चोङकते  हुए "मेरा क्या रहस्य गुरुदेव कृपया बताईये "|

तुकाराम जी बोले -  तुम अगले एक सप्ताह मरने वाले हो प्यारे शिष्य !”, संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले।

कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया | रास्ते में मन ही मन सोचा की अब बस केवल 7 दिन ही रह गए है जीवन के गुरूजी द्वारा दी गयी शिक्षा से शेष 7 दिन विनय ,प्रेम और प्रभु भक्ति में लगाऊंगा | उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। अपने जीवन में किये गए पापों का प्राश्चित करता, जिन लोगो से उसने कभी मनमुटाव किया हो या दिल दुखाया हो उन सभी से सचे ह्रदय से क्षमा मांगता, और पुनः अपने नित्य काम निपटा कर प्रभु स्मरण में लीन हो जाता |

ऐसे करते हुए 7 दिन आ गया तो शिष्य ने सोचा की मृतयु पूर्व अपने गुरु के दर्शन कर लूँ, इस हेतु वो संत श्री से मिलने गया वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला,

शिष्य -“गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”

संत तुकाराम - “मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र, शतायु भाव |"

गुरु के मुख से शतायु का आशिर्वाद सुन शिष्य चकित रह गया | संत श्री ने शिष्य से पूछा अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?”, संत तुकाराम ने
प्रश्न किया।

शिष्य ने हाथ जोड़ते हुए कहा - नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी।

संत तुकाराम मुसकुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे क्रोध के दमन का रहस्य है..!!

शिष्य पहले तोह संत श्री के व्यवहार से विसमित हुआ फिर तुरंत समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन की अनमोल शिक्षा देने के लिये मृत्यु का भय दिखाया था, उसने  गुरु की बात की गाँठ बांड ली और उन्हें प्रणाम करते हुए ख़ुशी ख़ुशी अपने धाम लौट गया |

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