इंदौर : अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद में व्यक्ति में बदलाव पर जोर
इंदौर : अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद में व्यक्ति में बदलाव पर जोर
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strong>उज्जैन/मध्यप्रदेश: मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में अगले वर्ष होने वाले महाकुंभ से पहले इंदौर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय धर्म और धम्म सम्मेलन के दूसरे दिन रविवार को विद्वतजनों ने धर्म, अध्यात्म व मानव-कल्याण पर गहन विचार-विमर्श किया। निष्कर्ष निकाला गया कि समाज में बदलाव के लिए व्यक्ति में बदलाव जरूरी है। परिसंवाद के दूसरे दिन के पहले मुख्य सत्र की अध्यक्षता डोबकक यूनिवर्सिटी (दक्षिण कोरिया) के प्रो़ सुन क्यून किम ने की। इस सत्र में माथरेमा सभा केरल के प्रमुख जोसफ माथरेमा ने कहा कि मानवता का कल्याण मनुष्य का स्वप्न होता है। बिना कर्म के कोई भी उपदेश व्यर्थ है। माथरेमा ने महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत को मौजूदा दौर में भी प्रासंगिक बताया।

विष्णुमोहन फाउंडेशन के हरिप्रसाद स्वामी ने धर्म के परिप्रेक्ष्य में वैराग्य की महत्ता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति में बदलाव से ही समाज में बदलाव आएगा। साथ ही यह भी कहा कि 'हमें अपने धर्म पर अहंकार नहीं होना चाहिए।'

होलिस्टिक साइंस रिसर्च सेंटर के डॉ. शैलेश मेहता ने उपयुक्त समझ और ज्ञान को धर्म का मर्म जानने के लिए जरूरी बताया। उन्होंने नकारात्मक और सकारात्मक व्यवहार से शरीर पर होने वाले प्रभाव की चर्चा की। टेम्पल ऑफ अंडरस्टैंडिंग ऑफ इंडिया के डॉ़ ए़ क़े मर्चेट ने ज्ञान एवं धर्म के पारस्परिक संबंधों को उजागर किया। उन्होंने बेहतर जीवन के लिए आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन में अंगीकार करना जरूरी बताया।

सम्मेलन के दूसरे मुख्य सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (दिल्ली) के पूर्व कुलपति प्रो़ कुटुंब शास्त्री ने की। उन्होंने कहा कि धर्म सदा से है। धर्म न तो पैदा हुआ है और न ही मरता है। सनातन धर्म यानी सदा से चला आ रहा धर्म। भारतीय चिंतन में अलग-अलग उपासना पद्धतियों का जिक्र है, लेकिन रिलीजन नहीं है, सिर्फ धर्म है। प्रो़ शास्त्री के मुताबिक, धर्म में सिर्फ कल्याण के सिवा कुछ और नहीं हो सकता।

इस सत्र में अमेरिका से होलिस्टिक साइंस चेरिटिबल रिसर्च फाउंडेशन के डॉ. राधाष्णन ने कहा कि प्रकृति अपने आप में पूर्ण है, लेकिन दृष्टिदोष होने से हम उस पूर्णता का अहसास नहीं कर पाते।

वहीं प्रसन्ना ट्रस्ट, बेंगलुरू के स्वामी सुखबोधानंद ने कहा, "हमारे जीवन की तरह हमारा धर्म भी यत्रंवत हो गया है और क्रिया की बजाय प्रतिक्रिया पर हमारा ध्यान केंद्रित हो गया है।"

इस सत्र में जापान के प्रो़ शन हीनो ने मानव-कल्याण के लिए सभी धर्मो के आदर्श मूल्यों को स्वीकार कर उन पर अमल करने पर बल दिया।

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