हमारे देश में दान करना सबसे बड़ा पुण्य का काम माना जाता है. देशभर में कई बड़े व्यापारी भी सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए आगे आते हैं और दिल खोलकर दान करते हैं. दानदाता समाज में बदलाव लाने के लिए और सभी परेशानियों को दूर करने के हर संभव प्रयास कर रहे हैं. हाल ही में ब्रिजस्पैन ग्रुप की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें देशभर के दानदाताओं के पैसों के इस्तेमाल के बारे में जानकारी प्रदान की गई हैं.
इस रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में सबसे ज्यादा दान टीबी की समस्या को दूर करने के लिए किया जा रहा है. दानदाता टीबी जैसी गंभीर बीमारी को दूर करने के लिए और उसे पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए दान कर रहे हैं. इतना ही नहीं वे ग्रामीण किसानों की गरीबी की समस्या को दूर करने के लिए भी आगे आए हैं और उन्हें इस समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए अपने धन का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके साथ ही वे नगरीय सेवाओं में सुधार करने के लिए भी मदद कर रहे हैं. वो सीखने की क्षमता को भी बेहतर बनाने के लिए इसमें अपना पूर्ण योगदान प्रदान कर रहे हैं.
-इस रिपोर्ट में समाज में सकारात्मक बदलाव लाने वाली आठ पहल की ओर ध्यान केंद्रित किया गया है. इसमें गूगल और टाटा की 'इंटरनेट साथी' पहल भी शामिल है.
- 'इंटरनेट साथी' का उपयोग डेढ़ करोड़ ग्रामीण महिलाओं डिजिटल साक्षर बनाने के लिए किया जा रहा है. इस पहल के तहज महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है.
- 'बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन' भी टीबी जैसी गंभीर बीमारी के रोकथाम के लिए पिछले काफी समय से सक्रिय है.
रिपोर्ट्स में ये भी बताया गया है कि भारत में साल 2010-11 में परोपकार पर करीब डेढ़ लाख करोड़ रूपए खर्च हुए थे और धीरे-धीरे ये राशि बढ़ती ही जा रही है. साल 2015-16 की बात करे तो इस राशि की दर 9 फीसदी बढ़ गई और 2.20 लाख करोड़ पर पहुंच गई. इस रिपोर्ट में इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन की पहल सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च, नंदन नीलेकणी और खोसला लैब्स के सीईओ श्रीकांत नादमुनी द्वारा फंडेड ई-गवर्नमेंट्स फाउंडेशन का नाम शामिल है.
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