परशुराम द्वादशी का व्रत एवं महत्व

परशुराम द्वादशी का व्रत एवं महत्व
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हिंदी पंचांग के अनुसार वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को परशुराम द्वादशी  के नाम से जाना जाता हैं. इस दिन भगवान विष्णु ने माता धरती के आग्रह पर धरती पर फैले अधर्म का नाश करने के लिए परशुराम के रूप में अवतार लिया और क्रूर और अधर्मी क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु के संहार के साथ ही 21  बार क्षत्रिय राजाओं का वध किया और बाद में उन्होंने महेंद्रगिरी पर्वत पर जाकर कई वर्षो तक तपस्या की. 

भगवान परशुराम जी को शास्त्र और शास्त्र का महाविद्वान कहा जाता हैं अर्थात उन्हें शास्त्र विद्या का बहुत ज्ञान था क्योंकि उन्हें स्वयं भगवान शिव ने शास्त्र शिक्षा दी थी और शास्त्रों (धर्म)  का भी बहुत बड़ा ज्ञाता माना जाता हैं. 

इस दिन व्रत करने के लिए, प्रातःकाल में स्नान करके भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित कर पूरी भक्ति भावना से पूजा-अर्चना करनी चाहिए और मन में लाभ,क्रोध,ईर्ष्या जैसे विकारों को नहीं लाना चाहिए. यह व्रत द्वादशी की प्रातः से शुरु  होता हैं और दूसरे दिन त्रयोदशी तक चलता हैं .

इस व्रत के फलस्वरुप धार्मिक और बुद्धिजीवी पुत्र की प्राप्ति होती हैं . इस व्रत को करने वाले दुखियो,शोषितो और पीड़ितों को हर प्रकार के दोषो से मुक्ति मिलती हैं और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं.

 

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शास्त्र और शस्त्र, दोनों का ज्ञाता एक ब्राह्मण, परशुराम

 

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