'आप ASI पर भरोसा नहीं कर रहे, तो कोर्ट पर कैसे करोगे..', ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष पर भड़की हाई कोर्ट
'आप ASI पर भरोसा नहीं कर रहे, तो कोर्ट पर कैसे करोगे..', ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष पर भड़की हाई कोर्ट
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प्रयागराज: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग करते हुए, वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति ने आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय को बताया कि उसे डर है कि ऐतिहासिक संरचना गिर सकती है। इस पर अदालत की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई, अदालत ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि वे अदालत के फैसले पर कैसे भरोसा करेंगे ? यदि वे ASI के आश्वासन पर भरोसा नहीं कर सकते कि संरचना को कोई नुकसान नहीं होगा।

रिपोर्ट के अनुसार, अदालत में मामला उठाते हुए, मस्जिद समिति ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद 1,000 वर्षों से प्रतिष्ठित काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित है। हिंदू पक्ष की इस दलील पर कि वह अयोध्या में रामजन्मभूमि मामले में हुए सर्वेक्षण के समान सर्वेक्षण पर भरोसा करता है, मस्जिद समिति ने कहा कि रामजन्मभूमि विवाद मामले में परिस्थितियां अलग थीं और इसकी तुलना नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि, "ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे मंदिर की बात काल्पनिक है।" उन्होंने कहा कि कल्पना ASI द्वारा सर्वेक्षण की अनुमति देने का आधार नहीं हो सकती। वहीं, हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि राजा टोडरमल के आदेश पर 1585 में उस स्थान पर बनाए गए मंदिर को 1669 में औरंगज़ेब ने ध्वस्त कर दिया था। उन्होंने कहा कि हिंदू महिलाओं के एक समूह ने अब वहां देवताओं की पूजा करने की अनुमति मांगी है। 

मस्जिद समिति ने कहा कि महिला याचिकाकर्ताओं ने निचली अदालत को बताया था कि उनके पास मस्जिद परिसर के अंदर हिंदू देवताओं की मौजूदगी का सबूत नहीं है और ASI को सबूत इकट्ठा करना होगा। सर्वेक्षण के लिए निचली अदालत के निर्देश को चुनौती देते हुए मुस्लिम पक्ष ने कहा कि, "इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। आप किसी और को सबूत इकट्ठा करने के लिए नहीं कह सकते। यह अवैध है।" हिंदू पक्ष ने इस बात पर जोर दिया कि उनके पास सबूत हैं और कहा कि ASI सर्वेक्षण को एक विशेषज्ञ की राय के रूप में देखा जा सकता है।

जब कोर्ट ने हिंदू पक्ष से पूछा कि क्या खुदाई जरूरी है, तो वकील ने कहा, "हां, लेकिन यह मस्जिद के अंदर नहीं होगा। ASI रडार मैपिंग करेगा। अगर परिस्थितियों की मांग हुई, तो खुदाई भी की जाएगी, वह भी आखिरी चरण में।" यह खुदाई कैसे की जाएगी, इस पर हिंदू पक्ष की दलीलों के बाद अदालत ने कहा, "या तो आप सर्वेक्षण की वीडियोग्राफी करें या यह कहें कि मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा।" इस पर हिंदू पक्ष के वकील ने सहमति जताई। जब मस्जिद समिति ने कहा कि उसे आश्वासनों पर भरोसा नहीं है, तो अदालत ने जवाब दिया, "जब आप किसी पर भरोसा नहीं करते हैं, तो आप हमारे फैसले पर कैसे भरोसा करेंगे?" कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की इस दलील पर भी तीखी प्रतिक्रिया दी कि अगर ढांचा गिरा तो हिंदू पक्ष के वकील जिम्मेदार होंगे। 

जब अदालत ने पूछा कि क्या मस्जिद समिति को डर है कि ढांचा गिर सकता है, तो समिति ने जवाब दिया, "हो सकता है, यह 1,000 साल पुराना है।" हिंदू पक्ष के इस आश्वासन पर कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सील किए गए क्षेत्र में कोई सर्वेक्षण नहीं किया जाएगा, मस्जिद समिति ने कहा कि यदि सर्वेक्षण किया गया तो उस क्षेत्र को भी नुकसान होगा। हिंदू पक्ष की इस दलील पर कि ASI टीम इंतजार कर रही है, मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने कहा, "आप जो करने जा रहे हैं, मैं उससे संतुष्ट नहीं हूं।"  उनके यह कहने पर कि ढांचा क्षतिग्रस्त नहीं होगा, अदालत ने पूछा, "क्या आप ड्रिल करने जा रहे हैं या यह वैक्यूम क्लीनर की तरह है? क्या आपने पहले कभी यह काम किया है?" जब ASI ने कहा कि उनके पास इसका अनुभव है, तो मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या उन परियोजनाओं की तस्वीरें हैं। उन्होंने कहा कि, "अदालत आपके द्वारा किए जाने वाले काम पर गहरा संदेह जता रही है।"

हिंदू पक्ष ने कहा कि इस्तेमाल की गई मशीन "लॉन घास काटने वाली मशीन की तरह चलेगी" और "ये मशीनें पूरी दुनिया में स्वीकार की जाती हैं"। अदालत शाम 4।30 बजे सुनवाई फिर से शुरू करेगी । बता दें कि, ज्ञानवापी मस्जिद 2021 में तब सुर्खियों में आई जब हिंदू महिलाओं के एक समूह ने ज्ञानवापी परिसर में देवताओं की पूजा करने की अनुमति के लिए उत्तर प्रदेश की अदालत का दरवाजा खटखटाया था। 

एक निचली अदालत ने तब परिसर के एक वीडियो सर्वेक्षण का आदेश दिया, जिसके दौरान एक वजूखाने में 'शिवलिंग' पाया गया था। हालाँकि, मस्जिद प्रबंधन समिति का कहना कि यह नमाज़ से पहले हाथ और पैर धोने के लिए वज़ूखाना (पूल) में एक फव्वारे का हिस्सा था। मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूल (वज़ूखाना) को सील कर दिया। इस साल की शुरुआत में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मस्जिद समिति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें परिसर के अंदर पाए जाने वाले हिंदू देवताओं की पूजा करने के अनुरोध की स्थिरता को चुनौती दी गई थी। इस आदेश ने वाराणसी अदालत के फैसले का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे पूल क्षेत्र को छोड़कर मस्जिद परिसर के अंदर ASI द्वारा सर्वेक्षण की अनुमति मिल गई।

इसके बाद मस्जिद समिति ने उत्खनन गतिविधियों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद शीर्ष अदालत ने अब याचिकाकर्ताओं को ASI सर्वेक्षण के आदेश को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी।

 क्या है पूरा मामला:-

 बता दें कि, विवादित परिसर पर हिन्दू पक्ष अपना दावा करता रहा है, हिन्दू पक्ष की दलील है कि औरंगज़ेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवा दी थी और ये उनके लिए आस्था का बेहद महत्वपूर्ण केंद्र होने के कारण उन्हें सौंपा जाना चाहिए। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध करता है। हिन्दू पक्ष ने कोर्ट का रुख किया, तो अदालत ने सच्चाई का पता लगाने के लिए सर्वे का आदेश दिया, इसका भी मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया। हालाँकि, तमाम जद्दोजहद के बाद सर्वे हुआ और ज्ञानवापी के वजूखाने में शिवलिंग नुमा आकृति मिली, तो मुस्लिम पक्ष उसे फव्वारा बताने लगा। अब वो शिवलिंग है या फव्वारा ? यह जानने के लिए जब कार्बन डेटिंग की मांग की गई, तो मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट जाकर उसे रुकवा दिया। अब जब वाराणसी कोर्ट ने ASI सर्वे का आदेश दिया, तो भी मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट जाकर इसे फ़ौरन रुकवा दिया। अब ये मामला फिर से हाई कोर्ट में है, जहाँ मुस्लिम पक्ष तरह-तरह की दलीलें देकर ASI सर्वे का विरोध कर रहा है। इससे यह सवाल उठ रहा है कि, आखिर मुस्लिम पक्ष सच्चाई सामने क्यों नहीं आने देना चाहता ? क्या वो जानता है कि, वो आकृति शिवलिंग ही है, मगर देना नहीं चाहता ? क्योंकि, इतिहासकार इरफ़ान हबीब भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि, औरंगज़ेब ने ही काशी, मथुरा के मंदिर तोड़े थे और उसी मलबे से वहीं मस्जिदें बनवा दी थी। उन्होंने बताया कि इतिहास की तारीख में मंदिर तोड़ने की तारीख तक दर्ज है। अगर ASI सर्वे होता है, तो सारी सच्चाई निकलकर सामने आ जाएगी, लेकिन मुस्लिम पक्ष उसमे लगातार रोड़ा अटका रहा है । 

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