ज्ञानवापी की ASI रिपोर्ट आएगी जनता के सामने, खुलेंगे कई अहम राज़ ! हिन्दू पक्ष के वकील ने दिया बड़ा बयान
ज्ञानवापी की ASI रिपोर्ट आएगी जनता के सामने, खुलेंगे कई अहम राज़ ! हिन्दू पक्ष के वकील ने दिया बड़ा बयान
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वाराणसी: ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ मंदिर मामले में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि एक बार उन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट की प्रति मिल जाएगी, फिर वे इसका अध्ययन करेंगे। मीडिया से बात करते हुए, विष्णु शंकर जैन ने कहा कि, 'वाराणसी में जिला अदालत का आदेश आ गया है। दोनों पक्षों की याचिकाएं स्वीकार कर ली गई हैं। दोनों पक्ष प्रमाणित प्रतियों के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके बाद, प्रतियां उन्हें सौंप दी जाएंगी।" 

जैन ने कहा कि, अदालत ने बुधवार को ASI को वैज्ञानिक रिपोर्ट सार्वजनिक करने और हार्ड कॉपी हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों के साथ साझा करने का निर्देश दिया था। यह 18 दिसंबर को वाराणसी जिला अदालत में ASI की रिपोर्ट जमा करने के बाद आया है। इसकी एक और कानूनी व्याख्या हो सकती है। कहीं भी गैग ऑर्डर का उल्लेख नहीं है। आदेश में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि रिपोर्ट सार्वजनिक न की जाए। हम प्रमाणित प्रतियों के लिए आवेदन करेंगे। एक बार जब हमें प्रति मिल जाएगी, हम उनका अध्ययन करेंगे।

 

अदालत के निर्देश के अनुसार, संबंधित पक्षों को रिपोर्ट तक पहुंचने के लिए एक हलफनामा जमा करना होगा, जिसका उद्देश्य चल रही कानूनी कार्यवाही में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना है। एक सवाल का जवाब देते हुए जैन ने कहा कि, 'अदालत के आदेश के साथ कोई शर्त नहीं जुड़ी है। कोई उपक्रम नहीं है। अदालत का आदेश यह स्पष्ट करता है कि पार्टियों को बिना किसी शर्त के प्रमाणित प्रतियों के लिए आवेदन करना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'अगर आपत्ति दर्ज करने की जरूरत पड़ी तो हम अदालत में आपत्ति दर्ज कराएंगे।'

इससे पहले 16 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं के एक आवेदन को स्वीकार कर लिया था, जिसमें ज्ञानवापी परिसर के 'वज़ुखाना' के पूरे क्षेत्र को साफ करने और स्वच्छता की स्थिति बनाए रखने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी, जहां कथित 'शिवलिंग' पाया गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के पिछले आदेशों को ध्यान में रखते हुए, 'वज़ुखाना' क्षेत्र को जिला प्रशासन वाराणसी की देखरेख में साफ किया जाएगा। 

ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति ने कहा कि वह पानी की टंकी की सफाई का समर्थन करती है, जो लगभग दो वर्षों से शीर्ष अदालत के आदेश पर सील कर दी गई है। 'शिवलिंग' की खोज के बाद 2022 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 'वज़ुखाना' क्षेत्र को सील कर दिया गया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित विवादित परिसर के अदालती आदेशित सर्वेक्षण के दौरान, 16 मई, 2022 को मस्जिद परिसर में हिंदू पक्ष द्वारा "शिवलिंग" मिलने का दावा किया गया था, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था। हालाँकि, जब मुस्लिम पक्ष से फव्वारा चलकर बताने के लिए कहा गया, तो वे ऐसा नहीं कर सके। इसके बाद हिन्दू पक्ष ने ''शिवलिंग'' की कार्बन डेटिंग करवाने की मांग की, जिससे उसकी वास्तविक उम्र पता चल सके, लेकिन इसका भी मुस्लिम पक्ष ने जमकर विरोध किया। 

 

गौर करने वाली बात ये भी है कि बाबरी मस्जिद की खुदाई कर सबूत निकालने वाले पुरातत्वविद केके मोहम्मद खुलकर कहते हैं कि, काशी और मथुरा में भी मंदिरों को तोड़कर ही मस्जिदें बनाई गईं हैं और मुसलमानों को ये दोनों जगहें हिन्दू समुदाय को सौंप देनी चाहिए, यही सही समाधान है। वहीं, अयोध्या में मंदिर का विरोध करने वाले JNU प्रोफेसर और इतिहासकार इरफ़ान हबीब भी स्वीकार करते हैं कि, काशी और मथुरा के मंदिर औरंगज़ेब ने ही तुड़वाए थे, वो कहते हैं कि इसके सबूत, मंदिर तोड़ने के फरमान भी मौजूद हैं, तारीखें भी दर्ज हैं, लेकिन अब इतने सालों बाद ये क्यों किया जाए ? यानी इरफ़ान हबीब सबकुछ जानने के बावजूद भी उन स्थलों के विवाद का समाधान नहीं चाहते, अगर समाधान चाहते भी हों, तो उनकी ये इच्छा नहीं है की फैसला हिन्दू पक्ष में आए। वे सच सामने नहीं आने देना चाहते। वे इसके लिए कांग्रेस सरकार द्वारा 1991 में लाए गए पूजा स्थल कानून की भी दुहाई देते हैं, जो धर्मस्थलों की प्रकृति न बदलने के लिए लाया गया था। आज़ादी के 44 साल बाद बनाया गया ये कानून कहता था कि, आज़ादी के वक़्त भारत में जो धर्मस्थल जिस तरह थे, वैसे ही रहेंगे। इस कानून से हिन्दू पक्ष के लिए काशी और मथुरा पर दावा करने का रास्ता ही बंद हो गया था, हालाँकि, इनके मुक़दमे ब्रिटिश काल से चल रहे हैं और अब तक जारी हैं।

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