कन्याकुमारी से कश्मीर तक शांति, सद्भाव की आशा यात्रा
कन्याकुमारी से कश्मीर तक शांति, सद्भाव की आशा यात्रा
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नई दिल्ली : देश में शांत और सद्भाव बनाए रखने के मकसद से शुरू की गई आशा यात्रा वाराणसी पहुंच चुकी है। मानव एकता मिशन के संस्थापक-श्री एम के नेतृत्व में जारी इस पदयात्रा में कन्याकुमारी से कश्मीर तक 7,500 किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। आशा यात्रा 15 से 18 महीनों में 11 राज्यों से गुजरते हुए शांति, सद्भाव और मानव एकता का संदेश देगी। यात्रा का उद्देश्य अर्थपूर्ण रूप से पुन: प्रतिष्ठित राष्ट्र को भावी पीढ़ियों को सौंपने के योग्य बनाना है। श्री एम ने इस यात्रा के मकसद को लेकर कहा, इस यात्रा का मूल विचार मेरे अनुभव से है। हमारा इसमें कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। मैं आध्यात्म से जुड़ा हूं। मुझे अनुभव हुआ कि हम सब एक हैं। हम मानव हैं और हम सभी सर्वव्यापी ईश्वर का एक अंश हैं और अगर वह ईश्वर प्रत्येक मानव के हृदय में हैं, तो फिर नाम कोई भी हो, हम सब एक हैं और यहीं मेरी चिता है। श्री एम ने कहा, मैंने देखा है कि नाम पूछने से अक्सर स्थिति बदल जाती है, लेकिन हम अगर बात करें, तो हृदय से जो मेल होता है उससे सब ठीक हो जाता है और इसी अनुभव से इस यात्रा का विचार आया।

इस यात्रा का शुभारंभ 12 जनवरी, 2015 को किया गया था, जो विभिन्न धर्मों के बीच पारस्परिक सहिष्णुता और सद्भावना के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद की जन्म शताब्दी है। कन्याकुमारी के गांधी स्मारक मंडप से आरंभ हुई इस यात्रा का समापन 2016 में श्रीनगर (जम्मू और कश्मीर) में होगा। श्री एम ने बताया, यह मानव एकता की यात्रा है। लोगों को जोड़ना चाहती है। भारतीय मिल कर रहें और यहां से एक संदेश सारे संसार को जाए कि आपस में मिल कर रहने में ही सबका कल्याण है। मानव एकता मिशन के संस्थापक ने बताया कि अभी तक यह यात्रा केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात से चलते हुए 5,000 किलोमीटर का सफर तय कर चुकी है और अभी वह वाराणसी पहुंचे हैं। इसके पश्चात वह वाराणसी से आगे के सफर के लिए निकलेंगे। अब तक के सफर के अनुभव के बारे में श्री एम से पूछा गया, तो उन्होंने बताया, अब तक के सफर में लोगों से मिलकर जो हमारा अनुभव रहा है, उससे लगता है कि हमारी यात्रा सफल हो जाएगी। थोड़ी समस्याएं खड़ी होती हैं, लेकिन अधिकांश भारतवासी एकता के बारे में सोचते हैं।

श्री एम ने कहा कि सर्दी, गर्मी, बरसात, धूप, धूल को सानंद स्वीकारते इस यात्रा में शामिल लोग हर रोज 15 से 20 किलोमीटर पैदल सफर तय करते हैं। यह आशा यात्रा भाईचारे, एकता, परस्पर विश्वास की भावनाओं को जगाते, बढ़ाते, पुष्ट करते हर दिन किसी गांव या शहर में रुकती है। इस दौरान श्री एम और उनके साथ चलने वाले लोग प्रत्येक शाम सभी संप्रदाय के लोगों से मिलतें हैं और वातार्लाप, संवाद तथा प्रार्थनाएं करते हैं। यह यात्रा किसी विशेष समूह या दल से संबन्धित नहीं, अपितु मानवीय भावनाओं से जुड़ी हुई है। श्री एम ने बताया कि वह एक ऐसे समाज के लिए यात्रा कर रहे हैं, जिसमें जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और लिंग से परे सभी को समान अवसर हों। यह संदेश व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से करोड़ों देशवासियों तक पहुंचाना है। श्री एम ने देश में भिवंडी, गोधरा जैसे हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का भी दौरा किया।

देश में बढ़ रही असहिष्णुता के बारे में जब श्री एम से पूछा गया, तो उन्होंने कहा, जब दिलीप कुमार साहब अभिनेता बनने काबुल से आए थे तब उनका नाम यूसुफ खान था और निर्देशकों, निर्माताओं ने उनसे नाम बदलने के लिए कहा। इसका मतलब यह हुआ कि उस समय यह चीजें थीं। अब सब अपने नाम से ही खान लोग हैं और वह लोकप्रिय हुए हैं, तो ऐसा कहना सही नहीं है कि असहिष्णुता बढ़ रही है। मैं इसका पक्ष नहीं ले रहा हूं, पर यह कह रहा हूं कि इसे रोकना है। श्री एम ने बताया कि उनका नाम मुमताज अली खान है, लेकिन वह एम इसलिए लिखते हैं कि क्योंकि वह खुद को मानवता से जोड़ते हैं। श्री एम के मुताबिक देश में एक समय असहिष्णुता थी, लेकिन अब इसमें सुधार हुआ है लेकिन आज असहिष्णुता की जो छवि दिख रही है, उसमें मीडिया की भी भूमिका कहीं न कहीं रही है।

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