SC में पेश हुए पूर्व जज काटजू, मिला अवमानना का नोटिस
SC में पेश हुए पूर्व जज काटजू, मिला अवमानना का नोटिस
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नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय की एक कार्रवाई से न्यायिक व्यवस्था में इतिहास बन गया है। जी हां, सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार अपने किसी जज को न्यायालय में सुनवाई के लिए बुलाया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह का आदेश दिया सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू को। काटजू भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष भी रहे हैं और अपने बयानों के लिए चर्चित रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति काटजू को अवमानना का नोटिस भी जारी किया है।

दरअसल यह नोटिस सौम्या बलात्कार प्रकरण में दिया गया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले के दोषी गोविंदसामी को हत्या के आरोप से दोषमुक्त कर दिया था, आरोपी को केवल बलात्कार के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। न्यायमूर्ति काटजू ने इस निर्णय की आलोचना की थी। जिसके बाद इस प्रकरण की सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और यूयू ललित ने काटजू से अपील की थी कि 11 नवंबर को न्यायालय में पेश होकर वे यह बता दें कि आखिर इस निर्णय में किस तरह की कमी है।

काटजू को अपनी बात रखने के लिए आधे घंटे का समय दिया गया था। हालांकि काटजू तय समय से बहुत पहले ही न्यायालय में आ गए थे और न्यायालय ने सुनवाई के लिए दोपहर 2 बजे का समय निर्धारित कर रखा था। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि इस बात को तय किया जाना जरूरी है कि सौम्या के सामने ऐसी स्थिति प्रस्तुत की गई जिसमें सौम्या ट्रेन से कूदी या फिर गिर गई? कोर्ट को ये देखना चाहिए था कि इस तरह के हालात किसने पैदा किए?

हालांकि न्यायालय ने काटजू की दलील नहीं मानी। काटजू का कहना था कि जज जो भी निर्णय करें उससे उन्हें फर्क नहीं पड़ता है। दूसरी ओर इस मामले में केरल सरकार की ओर से एटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी दलील प्रस्तुत की। उन्होंने न्यायालय से मांग की कि आरोपी गोविंद सामी को उच्च न्यायालय और निचली अदालत ने जो मौत की सजा सुनाई है उसे यथावत रखना चाहिए। न्यायमूर्ति गोगोई ने केरल सरकार की याचिका को नकार दिया। केरल सरकार ने इस मामले में फिर से गौर करने के लिए याचिका दायर की थी।

मगर न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। मार्कण्डेय काटजू ने न्यायालय में जब अपना पक्ष प्रस्तुत किया तो जज उनसे कुछ नाराज भी हो गए। उनके और जज के बीच तनातनी का वातावरण निर्मित हो गया था। दरअसल काटजू ने न्यायालय से कहा कि मैं आपने आग्रह पर यहां पर आया हूं। ऐसे में न्यायालय द्वारा किया जाने वाला व्यवहार ठीक नहीं है। काटजू जब तैश में बोल रहे थे तो न्यायमूर्ति गोगाई भी क्रोधित हो गए और उन्होंने पुलिसकर्मियों को संकेत दिया कि वे काटजू को बाहर ले जाऐं मगर कुछ ही देर में गोगाई अपने आसन से उठ गए और फिर उन्होंने पुलिसकर्मियों को काटजू को छोड़ देने का संकेत दिया।

इसके बाद काटजू बाहर चले गए। ऐसे में एटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने न्यायालय से निवेदन किया कि न्यायाधीश काटजू की दलीलों को और उनके द्वारा लिखे गए लेख को न्यायालय अवमान में न लें। उन्होंने जो भी लिखा वह आदेश में लिखा था ऐसे में इसे न्यायालय अवमान न माना जाए। न्यायालय में काटजू को 30 मिनट का समय दिया गया था। काटजू ने दलील दी थी कि अपराधी के एक कार्य को दूसरे अन्य कार्य से अलग नहीं किया जा सकता है।

न्यायालय में न्यायाधीशों का यही कहना था कि किसी को भी मृत्युदंड तभी दिया जा सकता है जब हम उसके अपराध को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हों। ऐसे में न्यायालय ने काटजू और अटाॅर्नी जनरल की दलीलों को नकार दिया और कहा कि अपराधी की मौत की सजा पर विचार नहीं किया जा सकता है।

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