अद्भुत! चीन में बच्ची की खोपड़ी को थ्री-डी प्रिंटिंग के जरिए तैयार किया गया
अद्भुत! चीन में बच्ची की खोपड़ी को थ्री-डी प्रिंटिंग के जरिए तैयार किया गया
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बीजिंग : चीन के डाक्टरों ने एक अनोखे आपरेशन में 3D प्रिंटिंग के जरिए एक बच्ची के सिर में टाइटेनियम इम्लांट किया. खबर के अनुसार चीन में एक तीन साल की बच्ची की खोपड़ी को थ्री-डी प्रिंटिंग के जरिए दोबारा डिजाइन किया गया है। मेडिकल हिस्ट्री में संभवत: ऐसा कारनामा पहली बार हुआ है। 'बिग हेड बेबी' नाम से मशहूर तीन साल की हान हान का सिर दुर्लभ बीमारी के कारण सामान्य आकार से चार गुना बड़ा था। इससे उसके अंधे होने और दिमाग में कीड़े लगने की आशंका बढ़ गई थी। चीन के हुनान प्रांत स्थित सेकंड पीपुल्स हॉस्पिटल में बुधवार को 17 घंटे तक चली सर्जरी के बाद डॉक्टर्स ने आने वाले समय में बच्ची की फुल रिकवरी होने की उम्मीद जताई है।

डॉक्टर्स ने 3D प्रिंटिंग के जरिए बच्ची के सिर में टाइटेनियम इम्लांट किया है। जो एक बेहद ही जटिल प्रक्रियां है जिसे डाक्टरों ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया. बच्ची की दादी बताती हैं, जब उसे इस बीमारी से दर्द होता था तो वह दर्द से चीखती थी जिससे रुह कांप जाती थी। दादी ने कहा की जब हान हान 6 माह की थी तब हमे उसकी बीमारी का पता चला। एक साल की हुई तो मां चल बसी। डॉक्टरों ने कहा इलाज में 40 से 50 लाख लगेंगे। पैसे थे नहीं।

रिश्तेदारों की मदद और ऑनलाइन फंडिंग से पैसे जमा हुए। तब ऑपरेशन हुआ। डॉक्टर ने बताया की हान हान को जन्म से ही हाइड्रोसेफलस नाम की दुर्लभ बीमारी थी इस बीमारी से ब्रेन में हमेशा फ्लूड बनता रहता है। लेकिन हान हान का मामला थोड़ा अलग था। उसके ब्रेन में 85 प्रतिशत तक फ्लूड जमा हो गया था। इससे ब्रेन पर प्रेशर बढ़ने लगा और उसके ब्लास्ट होने का खतरा बढ़ गया। ब्रेन में ब्लड सप्लाय भी कम हो गई थी। परिवार को तुरंत सर्जरी की सलाह दी गई। डॉक्टर्स ने सर्जरी का खर्चा 40 से 50 लाख रुपए बताया। लेकिन वह यह फीस चुकाने में सक्षम नहीं था। 

परिवार के दोस्त आगे आए और उन्होंने चंदा जमा किया। उसके पिता चेन यूझी बच्ची का ख्याल रखते हैं। बच्ची की दवाओं का खर्च हर दिन 1021 रुपए के करीब आता है। डॉक्टर ने बताया की उम्र बढ़ने के साथ-साथ हान के सिर की हडि्डयां भी बढ़ेंगी। जो टाइटेनियम के स्कल को पूरी तरह से कवर कर लेंगी। स्कल के अंदर इतना स्पेस छोड़ा गया है कि ब्रेन के विकास में रुकावट न आए। इस तरह डॉक्टर के इस ग्रुप ने बच्ची को एक खतरनाक खतरे से बाहर निकाला. अगर वक्त रहते यह आपरेशन न होता तो बच्ची की जान भी जा सकती थी।

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