क्या आप जानते है सन्यासियों के प्रकार
क्या आप जानते है सन्यासियों के प्रकार
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हमारे धर्म में सन्यासियों का अलग ही महत्त्व है उन्हें बहुत ही सम्मान दियां जाता है. लेकिन क्या आप जानते है सन्यासी कितने प्रकार के होते है ? आइये इस प्रश्न का उत्तर हम भागवत के यथारूप लिखे गए श्लोक के अनुसार जाने

 संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत:।
योगयुक्तो मुनिब्रह्मा न चिरेणाधिगच्छति॥6॥

उक्त श्लोक में बताया गया है की भक्ति में बिना लगे केवल समस्त कर्मों का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता परंतु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है। 

जिसका तात्पर्य यह है की संन्यासी दो प्रकार के होते हैं। मायावादी संन्यासी सांख्यदर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं तथा वैष्णव संन्यासी वेदांत सूत्रों के यथार्थ भाष्य भागवत-दर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं। मायावादी संन्यासी भी वेदांत सूत्रों का अध्ययन करते हैं किन्तु वे शंकराचार्य द्वारा प्रणीत शारीरिक भाष्य का उपयोग करते हैं।

भागवत सम्प्रदाय के छात्र पांचरात्रि की विधि से भगवान की भक्ति करने में लगे रहते हैं। अत: वैष्णव संन्यासियों को भगवान की दिव्य सेवा के लिए अनेक प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। उन्हें भौतिक कार्यों से कोई सरोकार नहीं रहता किन्तु तो भी वे भगवान की भक्ति में नाना प्रकार के कार्य करते हैं किन्तु मायावादी संन्यासी जो सांख्य तथा वेदांत के अध्ययन एवं चिंतन में लगे रहते हैं वे भगवान की दिव्य भक्ति का आनंद नहीं उठा पाते। 

चूंकि उनका अध्ययन अत्यंत जटिल हो जाता है, अत: वे कभी-कभी ब्रह्मचिंतन से ऊब कर समुचित बोध के बिना ही भागवत की शरण ग्रहण करते हैं। फलस्वरूप श्रीमद् भागवत का भी अध्ययन उनके लिए कष्टकर होता है। मायावादी संन्यासियों का शुष्क चिंतन तथा कृत्रिम साधनों से र्निवशेष विवेचना उनके लिए व्यर्थ होते हैं। भक्ति में लगे हुए वैष्णव संन्यासी अपने दिव्य कर्मों को करते हुए प्रसन्न  रहते हैं और यह भी निश्चित रहता है कि वे भगवद्धाम को प्राप्त होंगे। मायावादी संन्यासी कभी-कभी आत्म साक्षात्कार के पथ से नीचे गिर जाते हैं और फिर से समाजसेवा, परोपकार जैसे भौतिक कर्म में प्रवृत्त होते हैं। 

अत: निष्कर्ष यह निकला कि कृष्णभावनामृत के कार्यों में लगे रहने वाले लोग ब्रह्म-अब्रह्म विषयक साधारण चिंतन में लगे संन्यासियों से श्रेष्ठ हैं,यद्यपि वे भी अनेक जन्मों के बाद कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं। 

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