क्या कलाम को मिल सकी सच्ची श्रद्धांजलि
क्या कलाम को मिल सकी सच्ची श्रद्धांजलि
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यह देश का दुर्भाग्य है कि जिस समय भारत के महान सपूत एपीजे अब्दुल कलाम पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए थी, उस समय याकूब मेमन पर विलाप करने वाले सुर्खियों में हैं. जबकि इसका उल्टा होता, तो वह देशहित में रहता. अर्थात कलाम के व्यक्तित्व व कृतित्व पर होने वाली चर्चा से खासतौर पर देश के बच्चों और युवाओं को प्रेरणा मिलती. उन्हें पता चलता कि अपने सम्पूर्ण ज्ञान, योग्यता को देश के प्रति समर्पित करने वाला ही महान होता है. उन्होंने मिसाइल और परमाणु परीक्षण में उल्लेखनीय योगदान दिया. यह देश की सुरक्षा के लिए उनका प्रयास था. वह देश को स्वाभिमानी व शक्तिशाली बनाना चाहते थे. जीवन भर उसके लिये चलते रहे. जीवन के इस पथ पर उन्होंने विश्राम नहीं किया. अंतिम समय में भी वह भावी पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे थे.

वह देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए, लेकिन कभी उन्होंने किसी पद के लिये लॉबिंग नहीं की। वह कर्म पर विश्वास करते थे. फल के प्रति आशक्ति नहीं थी. दुबारा राष्ट्रपति बनने की बात आई तो उन्होंने साफ कहा कि सर्वसम्मति होने पर विचार करेंगे. देश का सर्वोच्च पद धारण करने के बाद उन्होंने ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया. उनके ना रहने पर एक प्रसंग की अवश्य देश में चर्चा होनी चाहिए थी. राष्ट्रपति भवन देखने की इच्छा सभी में हो सकती है. जिसका भाई, चाचा, भतीजा आदि राष्ट्रपति हो तो वह यह मोह कैसे रोक सकता है. ऐसे ही कलाम जी के 52 रिश्तेदार राष्ट्रपति भवन देखने आये, कुछ दिन रुके. यहां तक सब कुछ सामान्य था.

पहले भी ऐसा होता रहा है. पारिवारिक अतिथि जब राष्ट्रपति भवन से विदा हुए तो कलाम जी ने अपने वेतन से तीन लाख बावन हजार का चेक काटकर सरकारी खजाने में जमा किया. यह अतिथियों पर हुए खर्चो की निजी रूप में भरपाई थी. वह ऐसा ना करते तब भी उनकी ईमानदारी पर प्रश्न नहीं उठता. उनके पास अपना कुछ था ही नहीं. उन्होंने कभी पूंजी का मोह किया ही नहीं. लेकिन उन्होंने अपने पारिवारिक अतिथियों का खर्च उठाना भी ईमानदारी व नैतिकता के दायरे में माना. कितना अच्छा होता इस प्रसंग पर खूब चर्चा होती. समाज में अच्छा संदेश जाता. यह भी संयोग था कि इन्हीं दिनों दो पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी बंगला खाली करने का आदेश दिया था. ये मंत्री पद से हटने के बाद भी वर्षो तक यहां कब्जा जमाए थे.

इसके पहले अजित सिंह और लालू यादव को भी सरकारी बंगले से बेदखल करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. अजीत सिंह तो अपने हजारों समर्थकों को धरना दिलाने दिल्ली ले आए थे. इन प्रसंगों के बीच देश की नई पीढ़ी देखती कि सार्वजनिक जीवन में कलाम जैसे अनाशक्त लोग भी थे. जिन्हें सरकारी सम्पत्ति से कोई मोह नहीं था. राष्ट्रपति भवन छोड़ने के बाद भी उन्होंने किसी खास बंगले की मांग नहीं की. नियमानुसार जो मिल जाए वह ठीक. यह मानना पडेगा कि देश डॉ. कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दे सका. राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार करना ही उनके प्रति श्रद्धांजलि नहीं थी. एक हफ्ते का राष्ट्रीय शोक हुआ, प्रधानमंत्री अंतिम संस्कार में पूरे समय उपस्थित रहे, लेकिन डॉ. कलाम के प्रति इतना सम्मान ही पर्याप्त नहीं था.

ये तो पूर्व राष्ट्रपति के प्रति औपचारिकताएं थीं, जिनका पालन किया गया. वास्तविक सम्मान या श्रद्धांजलि तब होती जब उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर खूब चर्चा चलती. जब तक वह जीवित रहे, बच्चों और विद्यार्थियों को समझाते रहे, प्रेरणा देते रहे. राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने अपना यह कार्य छोड़ा नहीं. वरन कई बार वह सर्वोच्च पद की औपचारिकता छोड़ देते थे. समारोह स्थल पर वह बच्चों के साथ बैठ जाते थे, उनके अधिकारी विलंब होने की बात करते, लेकिन वह बच्चों, विद्यार्थियों से बात पूरी करने के बाद ही वहां से उठते थे. उन्हें लगता था कि बच्चों में राष्ट्र प्रेम का भाव जागृत करना आवश्यक है. यही देश का भविष्य बनायेंगे. ऐसा कम ही लोगों के साथ होता है, कि अपने ध्येय पथ पर चलते हुए ही उसके जीवन का अंत हो.

शिलांग में उनका अंतिम कार्यक्रम हुआ. डॉ. कलाम शिलांग में अपना भाषण पूरा नहीं कर सके थे, लेकिन वह जितना भी बोले, उस पर राष्ट्रव्यापी चर्चा अवश्य होनी चाहिए थी. यहां उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण और सामयिक मुद्दे उठाये थे. वह पर्यावरण पर बोले. सामान्य तौर पर इस विषय में प्रकृति, प्रदूषण, बिगड़ते मौसम चक्र आदि की बातें होती हैं. डॉ. कलाम ने इस चर्चा को शिलांग में नया आयाम दिया. उन्होंने इसमें आतंकवाद का भी मुद्दा जोड़ा. पर्यावरण और आतंकवाद पर इसके पहले किसी ने ऐसा ध्यान नहीं दिया था. डॉ. कलाम प्रकृति संरक्षण पर बोले. कहा कि प्रकृति हमारी गलतियों की सजा दे रही है.

इसका मानवता को नुकसान हो रहा है, वहीं आतंकवाद मानवता पर संकट है. यह भी पर्यावरण की भांति मानवता के सामने संकट बन रहा है. डॉ. कलाम के इस उद्बोधन को वर्तमान माहौल से जोड़कर देखें. भाषण पूरा नहीं हुआ, लेकिन वह समाधान के बिन्दु बता गये. प्रदूषण और आतंकवाद दोनों को मानवता के हित में रोकने की आवश्यकता है. जाहिर है डॉ. कलाम का व्यक्तित्व व कृतित्व इतना व्यापक है कि उस पर कई दिन तक देश में चर्चा होनी चाहिए थी. लेकिन याकूब के हमदर्दो ने ऐसा नहीं होने दिया.(आईएएनएस)

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