पहले भी कई बार बन चुकी हैं 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए कमेटियां, लेकिन इन बाधाओं के कारण नहीं हुई लागू
पहले भी कई बार बन चुकी हैं 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए कमेटियां, लेकिन इन बाधाओं के कारण नहीं हुई लागू
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नई दिल्ली: मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर कोई समिति बनाई हैं। यह कदम सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन पश्चात आया है, जिसका एजेंडा गुप्त रखा गया है। इसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपी गई है। ये समिति एक देश-एक चुनाव को लेकर काम करेगी। सरकार ने ये कमेटी का गठन ऐसे वक़्त किया है, जब इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि संसद के विशेष सत्र में एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल लाया जा सकता है। संसद का विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा। स्वतंत्र भारत में 'एक देश-एक चुनाव' की बात बहुत पहले से कही जाती रही है। पहले की सरकारों में भी इस पर बात होती रही है। हालांकि कुछ रिपोर्ट आदि से आगे कभी मामला नहीं बढ़ा। थोड़ा और पीछे चलें तो यह भी एक सत्य-तथ्य है कि, भारत में, 1967 तक एक साथ चुनाव कराने का चलन था। मगर 1968 एवं 1969 में कुछ विधान सभाओं एवं दिसंबर 1970 में लोकसभा के विघटन के पश्चात्, चुनाव अलग से कराए जा रहे हैं। हालांकि दोबारा से एक साथ चुनाव कराने की संभावना 1983 में चुनाव आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में उठाई गई थी। इसके बाद में 3 अन्य रिपोर्ट में इस अवधारणा से जुड़े और पहलुओं पर गहनता से अध्ययन किया गया। 

विधि आयोग की रिपोर्ट (1999):-
न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने मई 1999 में अपनी 170वीं रिपोर्ट में बताया था: "प्रत्येक वर्ष एवं सत्र के बाहर चुनावों के चक्र को समाप्त किया जाना चाहिए। हमें उस स्थिति में वापस जाना चाहिए जहां लोकसभा तथा सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं। नियम यह होना चाहिए कि लोकसभा एवं सभी विधानसभाओं के लिए 5 वर्षों में एक बार एक चुनाव हो।"

संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट (2015)
वर्ष 2015 में डॉ. ई.एम. सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय के लिए संसदीय स्थायी समिति बनाई गई। इस समिति ने 17 दिसंबर, 2015 को 'लोकसभा (लोकसभा) एवं प्रदेश विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की व्यवहारिकता' पर अपनी रिपोर्ट सामने रखी।

कमेटी ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने से ये बाधाएं हैं:-
* अलग-अलग चुनावों के संचालन के लिए वर्तमान में किया जाने वाला भारी खर्च;
* चुनाव के चलते आदर्श आचार संहिता लागू होने से नीतियों के लागू होने में एक तरह की पंगु व्यवस्था का सामना करना पड़ सकता है।
* आवश्यक सेवाओं की डिलीवरी पर असर।
* चुनाव के चलते तैनात की जाने वाली मैनपॉवर पर बोझ बढ़ेगा

विधि आयोग मसौदा रिपोर्ट (2018)
भारत के विधि आयोग जिसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति बीएस चौहान रहे थे। इस आयोग ने 30 अगस्त, 2018 को एक साथ चुनाव पर अपनी मसौदा रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में एक साथ चुनाव संबंधी कानूनी तथा संवैधानिक मुद्दों पर गौर किया गया। इसमें बताया गया कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते। संविधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 तथा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में उचित संशोधनों के जरिए लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं। आयोग ने यह भी सुझाव दिया था कि कम से कम 50 प्रतिशत प्रदेशों को संवैधानिक संशोधनों की पुष्टि करनी चाहिए। आयोग ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से सार्वजनिक धन की बचत होगी, सुरक्षा बलों तथा प्रशासनिक ढांचे पर बोझ कम होगा, सरकारी नीतियों का त्वरित कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा तथा यह सुनिश्चित होगा कि प्रशासनिक मशीनरी चुनाव प्रचार की जगह विकास गतिविधियों में लगी रहे।

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