मोबाइल हैंडसेट में हानिकारक प्रदार्थ की चेकिंग शुरू, एप्पल व ब्लैकबेरी ने कराया पंजीयन
मोबाइल हैंडसेट में हानिकारक प्रदार्थ की चेकिंग शुरू, एप्पल व ब्लैकबेरी ने कराया पंजीयन
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मोबाइल और स्मार्टफोन आज के युग में हर किसी की जरुरत बन गए है। इनके बिना इंसान निर्जीव सा हो जाता है। लेकिन इनमे आने वाले कई तरह के हानिकारक प्रदार्थ मानव जीवन को काफी नुकसान पंहुचा रहे है। सरकार अब जल्द ही इन हानिकारक प्रदाथो की चेकिंग शुरू करने वाली है जिससे आम जनता को इनसे होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। सस्ते एवं कम ब्रांडेड कंपनियों के हैंडसेट में शीशा, मरकरी और केडमियम जैसे हानिकारक पदार्थों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन पदार्थों का तय सीमा से ज्यादा मोबाइल फ़ोन में उपयोग उपभोक्ताओं के शरीर पर गहरा प्रभाव डालता है। मोबाइल हैंडसेट के निर्माण में एसएआर (स्पेसिफिक अर्ब्जोप्शन रेट) की मात्रा तय सीमा 1.6 वाट प्रति किलोग्राम से अधिक मिली है। ब्रांडेड कंपनियों के फोन में भी एसएआर 1.56 तक जा पहुंची है। इसके चलते अब सभी मोबाइल फोन कंपनियों को बीआईएस में पंजीकरण कराना जरुरी कर दिया गया है।

बीआईएस द्वारा जारी सुरक्षा मानकों के आधार पर हैंडसेट बनेंगे और उन पर बीआईएस से मोहर भी लगाना होगी। दूरसंचार मंत्रालय, स्वास्थ्य विभाग और बीआईएस की एक संयुक्त पहल के तहत यह पता लगाया गया कि मोबाइल हैंडसेट के निर्माण में कौन से हानिकारक पदार्थों का इस्तेमाल ज्यादा मात्र में किया जा रहा है। मोबाइल हैंडसेट या बैटरी गर्म होने जैसी शिकायतें मिलने के बाद स्वास्थ्य की दृष्टि से भी जांच-पड़ताल कराई गई। देखने को मिला कि कई लोग जिनके फोन की एसएआर तय सीमा से ज्यादा मिली, वह गुस्से और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो गए है। उनके मस्तिष्क और त्वचा की कोशिकाओं पर इन हानिकारक प्रदाथो का बहुत बुरा असर पड़ रहा था। कई कंपनियां जो सस्ते मोबाइल हैंडसेट बनाती हैं, उनमें एसएआर की मात्रा 1.96 से लेकर 2.30 तक पाई गई है।

ऐसे पता चलेगा रेडिएशन एनर्जी का दुष्प्रभाव-

मोबाइल हैंडसेट बनाते वक्त मर्करी, केडमियम, शीशा और हेक्सावेलेंट क्रोमियम जैसे हानिकारक पदार्थों उपयोग किया जाता है। हालांकि हैंडसेट में इनके प्रयोग की मात्र को तय किया जाता , लेकिन कई कंपनियां अपने हैंडसेट में काफी अधिक मात्र में इनका इस्तेमाल करती हैं। इसके चलते फोन में रेडिएशन एनर्जी की मात्रा बढ़ जाती है। मानव शरीर में इस एनर्जी को सहने की एक निश्चित सीमा होती है, जिसे स्पेसिफिक अर्ब्जोप्शन रेट (एसएआर) कहा जाता है। बीआईएस ने अब एसएआर की अधिकतम सीमा 1.6 वाट प्रति किलोग्राम तय की है। यदि हैंडसेट में एसएआर उक्त सीमा से ज्यादा है तो मोबाइल से निकलने वाली हानिकारक रेडियो किरणे ब्रेन, कान और त्वचा की कोशिकाओं पर दुष्प्रभाव डालती हैं। इसे यूं भी समझ सकते हैं। जैसे किसी व्यक्ति का वजन सौ किलो है तो मानक के हिसाब से उसका शरीर 160 वाट की ऊर्जा प्रति सेकेंड ले सकता है। इससे ज्यादा ऊर्जा आती है तो वह हानिकारक है। लंबी बात करने पर हैंडसेट का गर्म होना या बैटरी फटने की वजह भी हानिकारक पदार्थों का इस्तेमाल है।

एप्पल व ब्लैकबेरी ने कराया पंजीयन-

ग्राहकों की सुरक्षा के लिए भारत मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने हैंडसेट से लेकर बैटरी तक फोन के हर पुर्जे का सुरक्षा मानक तैयार कर दिया है। इसके तहत एप्पल व ब्लैकबेरी सहित 67 देशी-विदेशी मोबाइल फोन कंपनियों ने अपने 497 मॉडल पंजीकरण करा दिए हैं। भले ही हैंडसेट का निर्माण देश-विदेश में कहीं पर भी हो, लेकिन उसे बीआईएस के मानकों का पालन करना होगा। हर कंपनी को अपने हैंडसेट का प्रत्येक मॉडल बाजार में उतारने से पहले बीआईएस की लैब में भेजना होगा। चूंकि इन कंपनियों ने सामान्य सुरक्षा के लिए जरूरी तमाम प्रावधान लागू करने की बात कही है, इसलिए जांच रिपोर्ट सही होने पर इन्हें प्रत्येक हैंडसेट पर बीआईएस की मुहर लगानी होगी।

यह सावधानियां बनाये रखे-

  • बातचीत के लिए कम पावर वाले ब्लूटूथ का इस्तेमाल। 
  • हैडफोन या वायरलैस फोन ज्यादा फायदेमंद है। 
  • लंबी बात की बजाए छोटी बात करें, एसएमएस का ज्यादा प्रयोग किया जाए। 
  • सिग्नल क्वालिटी अच्छी नहीं है तो बात करने से परहेज करें। 
  • शरीर में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे पेसमेकर, कान में मशीन लगना या फिर ब्रेन सर्जरी हुई है तो 15 सैं. मी. दूरी से मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें। 
  • बच्चों और गर्भवती महिलाओं को लंबी बात करने से बचना चाहिए। 
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