"अरे भगवान, अरे पापा, एक बार हमारे पापा को दिखा दो...
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ये बेहद दर्दनाक आवाज़ें है, इन चीखों में गहरी सी एक दास्तां छुपी है, जो उन्नाव की एक गरीब लड़की के बलात्कार से शुरू होती है, और लड़की के बेबस बाप के मर्डर पर खत्म. खत्म इसलिए क्योंकि बीजेपी के एक नेता ने देश की बेटी को कहीं का भी नहीं छोड़ा, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार पिछले एक साल से कान में रुई डालकर बैठी है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से न्याय की कोई उम्मीद इसलिए भी नहीं की जा सकती क्योंकि वो खुद एक समय अपने भाषणों में किसी समुदाय की बहन-बेटियों को कब्र से निकालकर बलात्कार करने की सलाह अपने अंधे कार्यकर्ताओं को दे चुके है.

खैर आप इसमें न उलझिए, आपकी संवेदनाएं मर चुकी है, आपके भीतर न सहानुभूति है न समानुभूति, फिर आप भला ये पढ़ कर क्या कर लेंगे, एक लड़की का बलात्कार ही तो हुआ है, कोई बड़ी बात नहीं है, आए दिन होता है, कल भी हुआ था, आज भी हुआ है, आगे भी होता रहेगा. 

पिछले 11 महीनों से मुख्यमंत्री योगी के जंगल राज में एक लड़की, अपने ऊपर हुए शोषण को बताने लिए दर-दर भटक रही है, चीख रही है, चिल्ला रही है. वो लड़की पिछले एक 11 महीनों से बता रही है कि योगी के विधायक कुलदीप सेंगर और उसके भाई ने अपने घर काम करने के बहाने उसके साथ बलात्कार किया है, वो बता रही है कि विधायक उसके घर वालों को मार डालेगा, हुआ भी कुछ ऐसा ही विधायक को उठाने की जगह तानाशाही प्रशासन ने लड़की के लाचार बाप को उठाकर जेल में डाल दिया, जानवरों की तरह पीटा, खून बहते हुए कई घाव किये, इतने घाव कि पेट की आंते फट गई, इतने घाव कि  शायद देखने से रूह कांप जाए, फिर क्या था आखिर एक बूढ़ा बाप कब तक दर्द को सहता, मर ही गया, मरना ही था उसको, अरे साहब इतने पुलिस वाले मिलकर एक बूढ़े की रातभर पिटाई करेंगे तो वो मरेगा नहीं तो क्या करेगा?

योगी की गूँगी, बहरी सरकार तमाशा देख रही थी, अब भीख के नाम पर आश्वासन दिया है, जिसके लिए हम सब योगी के आभारी है. वैसे तो ऐसी घटनाएं देश के कोने-कोने में घटती है, हम अखबारों में पढ़ते भी और फिर एक तरफ के होठों को तिरछा करके अजीब ढंग से मुस्कुरा कर अपने काम पर चले जाते है. हम आये दिन नए-नए ढोंग करते है, कभी काल्पनिक स्त्री की मर्यादा का हवाला देकर देशभर में आंदोलन छेड़ते है, कभी मोमबत्ती लेकर सड़कों पर निकलते तो कभी सेल्फी वाले फ़ोन लेकर और अपना विरोध दर्ज करवाते है, ये विरोध मात्र एक ढोंग है जो हम अपनी संवेदनाओं को बेचकर करते है, लेकिन जब किसी लड़की को असल में ऐसे आंदोलनों की जरूरत होती है हम बिल में दुबक के बैठ जाते है और तमाशा देखते है.

न इन सरकारों को कभी शर्म आती है, न इन ठेकेदारों को जिन्होंने देश को चलाने का ठेका ले रखा है, देश भक्ति-देश सेवा का बोर्ड लगाकर पुलिस भी गरीबों की इज्जत और मर्यादा से खेलने से पीछे नहीं हटती. सेंगर जैसे नेताओं की लिए एक लड़की और उसका परिवार जैसे कोई खिलौना हो गया, तभी पल भर में उस खिलौने से खेला और फिर उसको ऐसा तोड़ा जो अब बरसों कभी जुड़ नहीं पाएगा.

हर बार संवेदनाओं का जिक्र करते-करते संवेदनाएं भी अब शायद हम पर हंसती होगी, हमे चिढ़ाती होगी, कि हम किस कदर के ढोंगी हो गए. किसी के दर्द को अपना दर्द बनाने के लिए उसकी गहराइयों में जाना होता है, लेकिन वहाँ जाने की हिम्मत शायद अब हम खो चुके है. उन गहराइयों में अब सिवाय अंधेरों के कुछ नहीं बचा, गहराइयों की सतहों से अब चीखों की सिर्फ आवाज़े आती है, जो उस मरे हुए बाप का मातम मनाते हुए उससे मिलने की आरजू लिए हर पल बस तड़पती है, उन गहराइयों में चिथड़ों में पड़ी एक लड़की है जो अपने नंगे जिस्म को देखकर सिहर जाती है और जोर-जोर से चिल्लाती है रोती है, उन गहराइयों में ढेरों एहसास है जो अब मरकर जन्नत में पहुँच गए है, अब कुछ नहीं बचा वहां पर सिवाय चीखों के सिवाय अंधेरों के, और इक आवाज़ के जो कह रही है 

"अरे भगवान, अरे पापा, एक बार हमारे पापा को दिखा दो, बस एक बार पापा को दिखा दो, बस एक बार पापा को दिखा दो.... बस एक बार...

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