भारत के 74% मुस्लिम चाहते हैं शरिया कोर्ट, 'अमेरिकी थिंक टैंक' के सर्वे में हुए कई बड़े खुलासे
भारत के 74% मुस्लिम चाहते हैं शरिया कोर्ट, 'अमेरिकी थिंक टैंक' के सर्वे में हुए कई बड़े खुलासे
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वाशिंगटन:  वाशिंगटन में स्थित अमेरिका के थिंक टैंक ‘Pew Research Center’ ने भारत में विभिन्न धर्मों को लेकर स्टडी की है और अपना रिपोर्ट जारी की है। Pew के रिसर्च के मुताबिक, भारत की आबादी विविधता भरी है और धर्म में खासी आस्था रखती है। विश्व के ज्यादातर हिन्दू, जैन और सिख भारत में ही रहते हैं, लेकिन साथ ही ये विश्व की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देशों में से भी एक है। यहाँ बौद्ध और ईसाईयों की जनसंख्या भी कई लाख में है। ‘Pew Research Center’ के मुताबिक, उसने कोरोना संकट से पहले 2019-20 में 29,999 भारतीयों को लेकर एक सर्वे किया, जिसमें यहाँ राष्ट्रवाद, धार्मिक आस्था और सहिष्णुता को लेकर स्टडी की गई।

 

भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 17 भाषाओं में स्थानीय स्तर के लोगों द्वारा एक सर्वेक्षण कराया गया। इसमें पाया गया कि भारत के लोग धार्मिक रूप से सहिष्णु हैं, किन्तु वो अपना धार्मिक जीवन अलग-अलग जीना पसंद करते हैं। रिसर्च के मुताबिक, 84 फीसद लोगों ने खुद को ‘सच्चा भारतीय’ बताते हुए सभी धर्मों के सम्मान की बात कही, जबकि 80 फीसद ने कहा कि अपने धर्म का एक हिस्सा होने भी उतना ही अहम है, जितना दूसरे धर्मों का आदर करना। 6 धर्मों के लोगों ने कहा कि वो भारत में अपने धार्मिक क्रियाकलाप स्वतंत्रता से करते हैं। ज्यादातर ने बताया कि दूसरे धर्मों के लोग भी यहाँ पूरी स्वतंत्रता के साथ आने धार्मिक क्रियाकलाप करते हैं। इस सर्वे में दावा किया गया है कि 85 फीसद हिन्दुओं ने माना कि एक सच्चा भारतीय सभी धर्मों का आदर करता है, जबकि 78% मुस्लिमों ने यह बात कही।  

 

64% हिन्दुओं ने कहा कि भारत का सच्चा नागरिक होने के लिए हिन्दू होना आवश्यक है और उनमें से 80 फीसद ने कहा कि इसके लिए हिंदी भाषा भी जरुरी है। 72% हिन्दुओं ने कहा कि बीफ खाने वाला व्यक्ति हिन्दू नहीं हो सकता। रिसर्च में पाया गया कि गाय को हिन्दू पवित्र मानते हैं। ‘Pew Research Center’ की रिसर्च के अनुसार, 74% मुस्लिमों ने कहा कि मुस्लिमों को अपने मजहब की शरिया कोर्ट में ही जाना चाहिए। बता दें कि 1937 से ही भारत में मुस्लिमों के लिए मजहबी मामलों को निपटाने के लिए एक अलग न्यायिक व्यवस्था है, जिसे ‘दारुल-उल-क़ज़ा’ कहा जाता है। काजी के अंतर्गत काम करने वाले इन कोर्ट का फैसला मानने के लिए कानूनी रूप से किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता।

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