हार्ले डेविडसन के नाम के पीछे है ये राज
हार्ले डेविडसन के नाम के पीछे है ये राज
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हार्ले डेविडसन ये नाम है आज दुनिया के ज्यादातर युवाओ की पहली पसंद बन चुकी बाइक का. लुक, स्टाइल,पावर और रफ़्तार का कॉम्बो है हार्ले डेविडसन की बाइक्स. जानते है आज इसी की कहानी- डेविडसन की बाइक और युद्ध का नाता  बहुत ही पुराना है ये बाइक फौजियों की पहली पसंद रह चुकी है. विश्व युद्ध के दौरान हार्ले डेविडसन की बाइक'स खूब बिकी थी और युद्ध खत्म हो जाने के बाद भी इसी बाइक की सवारी करते हुए अमेरिकन फौजीओ ने जर्मनी में प्रवेश किया था. आज के समय में यह कम्पनी, दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकल कंपनियों में से एक होने के साथ साथ, अपने ब्राण्ड लोयालटी के लिए भी जानी जाती है. आज से करीब 114 साल पुराने इस ब्रांड की सक्सेस स्टोरी की शुरुआत होती है 116 साल पहले, जब 1901 में 20 साल की उम्र में विलियम एस हार्ले ने साइकल के पैडल से छुटकारा पाने के लिए, उसे बाइक में तब्दील करने का फैसला किया और फिर इस सपने को साकार करने के लिए वे इंजन बनाने के जुगाड़ में लग गये, जिसे वे साइकल में फिट कर सकें. इस काम में उनकी सहायता की उनके बचपन के दोस्त आर्थर डेविडसन और आर्थर के भाई वाल्टर डेविडसन ने. सभी ने साथ मिलकर 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद 116 cc का छोटा सा इंजन बनाया, जो की पैडल वाली साइकल में ही फिट हो जाता था. लेकिन इस इंजन से जुड़े हुए साइकल को अगर  पहाड़ी पर चढ़ाया जाता तो यह नहीं चढ़ पाती थी. वे सभी लोग अमेरिका के मिल्वौकी नाम के जगह पर रहते थे जहां पर ज्यादा ऊंची तो नहीं लेकिन छोटी छोटी बहुत सी पहाड़ीयां थी तो इस तरह से हार्ले और डेविडसन का पहला इंजन असफल रहा.

इस बाइक के असफल होने के बाद भी हार्ले और डेविडसन भाइयों ने हार नहीं मानी, और इस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए वे एक नए रिसर्च में लग गए. अब उन्होंने डेविडसन फैमिली के घर के पीछे 150 स्क्वायर फीट का एक छोटा सा वर्कशॉप बनाया. यहां पर आर्थर और वाल्टर के भी बड़े भाई विलियम डेविडसन ने भी उनकी खूब मदद की. यही चारो लोग हार्ले डेविडसन के फाउंडर माने जाते हैं. जल्दी ही उन्होंने 450 सीसी के इंजन के साथ एक और बाइक बना ली,जो कि आसानी से पहाड़ियों पर भी चढ़ सकती थी. यह बाइक पिछले बाइक की तुलना में करीब 4 गुना ज्यादा शक्तिशाली थी. फिर इस बाइक के सफलता के बाद हार्ले डेविडसन ने बाइक्स की मैन्युफैक्चरिंग करनी शुरू कर दी. आगे चलकर 1904 में मिल्वौकी के ही एक मोटरसाइकिल रेस में हार्ले डेविडसन को प्रेजेंट किया गया.

बस यही से सफर की शुरुआत हुई. 1905 में हार्ले डेविडसन की कुल 12 बाइकस बिकी जिसमें से 3 बाइक कार्ल एच बेग नाम के एक आदमी ने खरीदा था, जिन्हें की आगे चल कर हार्ले डेविडसन का पहला डीलर बनाया गया. 1906 में हार्ले और डेविडसन भाइयों ने मिल कर चेस्ट-नट स्ट्रीट में प्लांट खोला जो आज हार्ले डेविडसन का कारपोरेट हेडक्वाटर है. उत्पाद 12 से बढ़कर 50 मोटरसाइकिल हो गया . आगे भी हार्ले डेविडसन की डिमांड बढती रही और फिर 1907 में कम्पनी ने 150 मोटरसाइकिलस बनायीं और इसी साल हार्ले डेविडसन को आधिकारिक तौर पर रजिस्टर करवाया गया. 1909 तक हार्ले डेविडसन 1150 इकाई बनाने लगी. कम्पनी के लिए पहला विश्वयुद्ध बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ, सरकार ने  कंपनी की 20 हजार से ज्यादा गाड़िया खरीदी. 1920 आते-आते हार्ले डेविडसन 67 देशों में पहुंच चुकी थी और यह कम्पनी उस समय की सबसे बड़ी मोटरसाइकल बनाने वाली बन गई. 1941 से दूसरे विश्व युद्ध के समय हार्ले डेविडसन ने 4 साल तक सिर्फ अमेरिका के फौजियों के लिए 90 हजार मोटरसाइकलस बनायीं और उनके एक्सीलेंट प्रोडक्शन के लिए उन्हें दो बार नेवी का इ अवार्ड दिया गया. पहला 1943 में और दूसरा 1945 में. आगे चल कर 1969 में अमेरिकन मिशनरी एंड फाउंडेशन यानी AMF ने इस कम्पनी को खरीद लिया. मगर उन्होंने बाइक की क्वालिटी में कमी कर दी जिससे कंपनी की बिक्री बहुत ज्यादा घट गयी.  AMF ने 1981 में इस कम्पनी को वाघन और विली जी डेविडसन को बेच दिया, जिन्होंने 2003 में इस कम्पनी को स्पोर्ट्स बाइक बनाने वाली कम्पनी “बुयेल मोटरसिकल कम्पनी” को बेच दी. भारत में हार्ले डेविडसन की बाइक 2009 में आई जहा इसकी स्ट्रीट 750 मॉडल सबसे लोकप्रिय है जिसकी कीमत करीब 4 लाख रूपये है.

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