'सुश्रुत संहिता' का सामान्य परिचय'
'सुश्रुत संहिता' का सामान्य परिचय'
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'सुश्रुत संहिता' का सामान्य परिचय और उसकी विषयवस्तु की संक्षिप्त जानकारी। सुश्रुत संहिता आयुर्वेद एवं शल्यचिकित्सा का प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है। इसके रचयिता सुश्रुत हैं जो छठी शताब्दी ईसापूर्व काशी में जन्मे थे। सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब-ए-सुस्रुद' नाम से अनुवाद हुआ था। सुश्रुतसंहिता में 184 अध्याय हैं जिनमें 1120 रोगों, 700 औषधीय पौधों, खनिज-स्रोतों पर आधारित 64 प्रक्रियाओं, जन्तु-स्रोतों पर आधारित 57 प्रक्रियाओं, तथा आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का उल्लेख है।

सुश्रुत संहिता दो खण्डों में विभक्त है : पूर्वतंत्र तथा उत्तरतंत्र

पूर्वतंत्र : पूर्वतंत्र के पाँच भाग हैं- सूत्रस्थान, निदानस्थान, शारीरस्थान, कल्पस्थान तथा चिकित्सास्थान। इसमें 120 अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के प्रथम चार अंगों (शल्यतंत्र, अगदतंत्र, रसायनतंत्र, वाजीकरण) का विस्तृत विवेचन है। (चरकसंहिता और अष्टांगहृदय ग्रंथों में भी 120 अध्याय ही हैं।)

उत्तरतंत्र : इस तंत्र में 64 अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के शेष चार अंगों (शालाक्य, कौमार्यभृत्य, कायचिकित्सा तथा भूतविद्या) का विस्तृत विवेचन है। इस तंत्र को 'औपद्रविक' भी कहते हैं क्योंकि इसमें शल्यक्रिया से होने वाले 'उपद्रवों' के साथ ही ज्वर, पेचिस, हिचकी, खांसी, कृमिरोग, पाण्डु (पीलिया), कमला आदि का वर्णन है। उत्तरतंत्र का एक भाग 'शालाक्यतंत्र' है जिसमें आँख, कान, नाक एवं सिर के रोगों का वर्णन है।

शल्यक्रियाएँ
सुश्रुतसंहिता में आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन है:

(1) छेद्य (छेदन हेतु) 
(2) भेद्य (भेदन हेतु) 
(3) लेख्य (अलग करने हेतु)
(4) वेध्य (शरीर में हानिकारक द्रव्य निकालने के लिए) 
(5) ऐष्य (नाड़ी में घाव ढूंढने के लिए) 
(6) अहार्य (हानिकारक उत्पत्तियों को निकालने के लिए)
(7) विश्रव्य (द्रव निकालने के लिए) 
(8) सीव्य (घाव सिलने के लिए)

सुश्रुत संहिता में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों (साधनों) तथा शस्त्रों (उपकरणों) का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। इस महान ग्रन्थ में २४ प्रकार के स्वास्तिकों, २ प्रकार के संदसों (), २८ प्रकार की शलाकाओं तथा २० प्रकार की नाड़ियों (नलिका) का उल्लेख हुआ है। इनके अतिरिक्त शरीर के प्रत्येक अंग की शस्त्र-क्रिया के लिए बीस प्रकार के शस्त्रों (उपकरणों) का भी वर्णन किया गया है। ऊपर जिन आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का संदर्भ आया है, वे विभिन्न साधनों व उपकरणों से की जाती थीं।

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