गौ माता को चारा डालने से सहज ही पुण्य प्राप्त हो जाता है
गौ माता को चारा डालने से सहज ही पुण्य प्राप्त हो जाता है
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गौ माता को सारे शास्त्रों में सर्वतीर्थमयी व मुक्तिदायिनी कहा गया है। गौ माता के शरीर में सारे देवताओं का निवास है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गौ के पैरों में समस्त तीर्थ व गोबर में साक्षात लक्ष्मी का वास माना गया है। गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी का जो व्यक्ति नित्य तिलक लगाता है, उसे किसी भी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसे सारा फल उसी समय वहीं प्राप्त हो जाता है। 

जिस घर या मंदिर में गौ माता का निवास होता है उस जगह को साक्षात देवभूमि ही कहा गया है और जिस घर में गौ माता नहीं होती, वहां कोई भी अनुष्ठान व सत्कार्य सफल नहीं होता। जहां गौ माता हो, यदि ऐसे स्थान पर कोई भी व्रत, जप, साधना, श्राद्ध, तर्पण, यज्ञ, नियम, उपवास या तप किया जाता है तो वह अनंत फलदायी होकर अक्षय फल देने वाला हो जाता है। 

यह जरूर ध्यान रखने की बात है कि गौ से मतलब उस गाय से है जो देवता के रूप में विराजमान गौ माता है। आज के दौर की देशी गाय को ही प्राचीन काल में गौ नाम से कहा गया है। यही कारण है कि आयुर्वेद में देशी गाय के ही दूध, दही, घी व अन्य तत्वों का प्रयोग होता है। गौ माता ही हमारी संस्कृति और धर्म में ऐसे देवता के रूप में प्रतिष्ठित है जिनकी नित्य सेवा और दर्शन करने का विधान हमारे शास्त्रों ने किया है। वर्ष में दो बार दो बड़े पर्व गौ माता के उत्सव के रूप में ही मनाए जाते हैं।
 
एक भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को और दूसरा कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को। वेद पुराणों में गौ स्तवन वेदों में स्पष्ट लिखा है कि गौ रुद्रों की माता और वसुओं की पुत्री है। अदिति पुत्रों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है। इसलिए र्निलिप्त भाव से पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए व्यक्ति को नित्य गौ माता की सेवा करनी चाहिए। 

महाभारत कहता है- यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु दीक्षया च लभेन्नरः। तत्पुण्यं लभते सद्यो गोभ्यो दत्वा तृणानि च।। अर्थात सारे यज्ञ करने में जो पुण्य है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल मिलता है वह फल गौ माता को चारा डालने से सहज ही प्राप्त हो जाता है।

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