संबंधों की तुरपाई षड्यंत्रों से मत खोलो.. कुमार विश्वास
संबंधों की तुरपाई षड्यंत्रों से मत खोलो.. कुमार विश्वास
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दिल्ली: कुमार विश्वास फिर अपनी पुरानी दुनिया में लौट गए है. मगर उनका दर्द वह भी रह रह कर उन्हें सता रहा है. एक कवि सम्मेलन में कुमार विश्वास ने अपने दबे हुए जज्बात जाहिर किये और कविता के माध्यम से कई हमले किये . अब शब्दों से खिलवाड़ भला कुमार विश्वास से अच्छा कौन कर सकता है.

कुमार विश्वास ने कहा....

कि पुरानी दोस्ती को... इस नई ताकत से मत तोलो... कि पुरानी दोस्ती को... इस नई ताकत से मत तोलो... ये संबंधों की तुरपाई है... षड्यंत्रों से मत खोलो... ये संबंधों की तुरपाई है... ये संबंधों की तुरपाई है... षड्यंत्रों से मत खोलो... मेरे लहजे की छैनी से... गढ़े कुछ देवता जो कल... मेरे लहजे की छैनी से... गढ़े कुछ देवता जो कल... मेरे लफ्जों पे मरते थे... वो अब कहते हैं...मत बोलो...

अपने चिर परिचत अंदाज में कुमार ने आगे कहा .....वो बोले दरबार सजाओ... वो बोले जयकार लगाओ... वो बोले दरबार सजाओ... वो बोले जयकार लगाओ... वो बोले हम जितना बोले... तुम केवल उतना दोहराओ... वो बोले दरबार सजाओ... वो बोले जयकार लगाओ... वो बोले हम जितना बोले... तुम केवल उतना दोहराओ... वाणी पर इतना अंकुश कैसे सहते... वाणी पर इतना अंकुश कैसे सहते... हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते.

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