105 बरस पुरानी ऊर्दू की श्रीरामचरित मानस की प्रति मिली
105 बरस पुरानी ऊर्दू की श्रीरामचरित मानस की प्रति मिली
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नई दिल्ली : क्या श्री रामचरितमानस ऊर्दू में लिखा जा सकता है। आप कहेंगे क्यों नहीं अभी लीजिए, किसी ऊर्दू वाले को पकड़ कर बैठा देते हैं रामचरित मानस सुनने के लिए। मगर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि रामचरित मानस भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ही ऊर्दू में लिखा जा चुका है। जी हां, हाल ही में इसकी 105 वर्ष पुरानी प्रति मिली है। दरअसल इस प्रति को दिल्ली के हौजखास क्षेत्र में कबाड़ी बाजार में फटी हुई किताब के ढेर से हासिल किया था। संकट मोचन मंदिर के पुजारी परिवार द्वारा इसे केवल 600 रूपए में खरीदा गया।

यह बात सामने आई है कि पुजारी का परिवार श्री रामचरितमानस की पांडुलिपि को खोज रहा है। यही नहीं तुलसी घाट क्षेत्र के अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास से इसे चुरा लिया गया। दूसरी ओर गोस्वामी तुलसीदास से जुड़े लेख भी चोरी कर लिए गए थे। मगर बाद में खोज के दौरान पुजारी के परिवार को श्रीरामचरित मानस की उर्दू प्रति दी गई। पांडुलिपियां चोरी हो गईं दूसरी ओर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में विज्ञान के प्रोफेसर व संकट मोचन मंदिर के पूर्व पुजारी वीरभद्र ने इसकी खोज प्रारंभ की। उल्लेखनीय है कि लाहौर के हाफ टोन प्रेस में इसका प्रकाशन किया गया। 

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