आज के ही दिन 1000 जवानों के रक्त ने लिखा था बर्फ पर जीत का इतिहास
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नई दिल्ली : वर्ष 1984 में 13 अप्रैल का यह दिन भारतीय सेना की वीरता और अदम्य साहस के नाम रहा है। जी हां, विश्व के सर्वाधिक दुर्गम क्षेत्र सियाचिन में भारतीय सेना ने कब्जे के लिए सशस्त्र अभियान चलाया था। हालांकि भारत को अपने 1000 जवानों को खोना पड़ा था लेकिन आज भी वह उन शहीदों को सलाम करता है जिनकी बदौलत बर्फीले क्षेत्र में हम अपनी जमीन की रक्षा कर सके।

जी हां, दरअसल वर्ष 1949 के जुलाई माह में कराची समझौते में जो सीमा रेखा का विभाजन किया गया था उसे लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई थी। इसके बाद वर्ष 1972 में शिमला समझौते के समय सियाचिन को इंसानों के योग्य नहीं माना गया। भारत और पाकिस्तान के बीच इस क्षेत्र में सीमा रेखा का चिन्हांकन दस्तावेज में नहीं था। इसके बाद पाकिस्तान यहां पर विश्वभर के पर्वतारोहियों को भेजने लगा। उसका उद्देश्य इस क्षेत्र पर कब्जा करना था।

दरअसल भारत की सीमा सियाचिन क्षेत्र में अक्साईचीन के तौर पर चीन के क्षेत्र से मिलती है ऐसे में यदि भारत के इस क्षेत्र पर पाकिस्तान कब्जा कर लेता तो भविष्य में पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत के लिए मुश्किल कर सकते थे। ऐसे में इस क्षेत्र को भारत के लिए जीतना बेहद महत्वपूर्ण था। मगर भारत को जब जानकारी लगी कि पाकिस्तान ने बर्फीले क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले सूट्स, कपड़ों और हथियारों को लेकर आॅर्डर दिया है।

इस सामग्री को यूरोप से मंगवाया गया था। ऐसे में भारत सतर्क हो गया और उसने आॅपरेशन मेघदूत चलाया। यहां पर करीब माईनस 70 डिग्री सेल्सियस के तापमान के बाद भी भारतीय सेना ने जीत अर्जित की। 13 अप्रैल 1984 को भारत ने आॅपरेशन मेघदूत चलाया था। पाकिस्तान को इस दौरान हार का सामना करना पड़ गया था।

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