18000 रूपए में मिलती है मात्र 10 ग्राम इत्र की महक
18000 रूपए में मिलती है मात्र 10 ग्राम इत्र की महक
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क्या आपने सोचा है सोने-चांदी के दाम से ज्यादा दाम इत्र की खुशबु हो सकती है. बाजार दरीबा कलां में तकरीबन 200 वर्षो से अपनी अनमोल खुशबू के लिए पहचाने जाने वाले 'रूह गुलाब' की मांग में भले ही कमी आ रही है लेकिन इसके दाम महंगी धातुओ से भी ज्यादा है. मात्र 10 ग्राम इत्र की कीमत 18,000 रुपये है. बीते दिनों निर्यात पर लगे प्रतिबंधों के चलते एक्सपोर्ट में कमी और घरेलू बाजार में केमिकल व अल्कोहल परफ्यूम से मिल रही चुनौती के बावजूद फर्म 'गुलाब सिंह जौहरी मल' के इस प्रीमियम ब्रैंड के दामो में कोई कमी नहीं की गयी है. इसका कारण भारी-भरकम लागत होना है. फर्म का दावा है कि रूह गुलाब की 5 ग्राम मात्रा के लिए ही खास किस्म के 40 किलोग्राम गुलाब का प्रयोग करते है.

प्रफुल्ल गांधी जो एक दूकान के मालिक है ने कहा है कि, 'हम 50 रुपये से लेकर 5 और 10 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के इत्र भी अपने पास रखते है, लेकिन रूह गुलाब आम आदमी की बजट से बाहर है. कुछ समय से निर्यात में कमी आने की वजह से और घरेलू बाजार में केमिकल परफ्यूम कम दामो में मिलने के बावजूद इसके मूल्य में कमी करना हमारे नियंत्रण में नहीं है.

प्रफ्फुल गांधी चांदनी चौक में सन 1818 से इत्र का व्यापार कर रही फर्म का हाथरस के पास हसायन में एक इत्र बनाने वाली डिस्टिलियरी है. गुलाब सिंह जौहरी मल की अन्य ब्रांच के मालिक नवीन गंधी जानकारी देते हैं, 'इस इत्र निर्माण की प्रक्रिया ने बहुत मेहनत और धन खर्च होता है. एक तो यह हसायन की मिट्टी में उपजे गुलाब से बनता है, दूसरा प्रक्रिया में बेहद सावधानी से काम करना पड़ता है. वह बताते हैं कि अरमानी, अजेरो और बरबेरी जैसे बड़े ब्रैंड के महंगे परफ्यूम का प्रयोग इन दिनों देखने को मिला है. इसका असर उनके छोटे और मझोले ब्रैंडों पर दिखाई देता है.

नवीन गांधी से इस बारे में चर्चा करते हुए बताया हैं कि सरकार ने सैंडल ऑइल और इत्र का निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया है, जिसके चलते उनके कई ब्रैंड की विदेशी बाजारों में निर्यात घट कर आधा हो गया है. घरेलू मोर्चे पर कुछ नॉर्म्स पर उन्हें कारोबार को विस्तार देने की स्वीकृति प्रदान नहीं करती है. इसके लिए फर्म को अपनी प्रक्रिया में बदलाव करना पड़ेगा, जिससे उनकी दशकों पुरानी पहचान समाप्त हो जाती है. ऐसे में फर्म सीमित मात्रा में ही अपने उत्पादों का विक्रय कर रही है. वह बताते हैं कि इत्र के ज्यादातर कद्रदान मुस्लिम वर्ग से आते हैं, क्योंकि वे अल्कोहल वाले सेंट को अपनी धार्मिक आस्था के विरुद्ध मानते है.

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