गोवर्धन पूजा का है खास महत्व
गोवर्धन पूजा का है खास महत्व
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दीपावली के अगले रोज मनाई जाती है गोवर्धन पूजा. इस पूजा के पीछे कई कारण बताये जाते है. इसे प्रकृति से भी जोड़ कर देखा जाता है. किसान परिवारों में इस पूजा का खास महत्व देखने को मिलता है. हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार, गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दुसरे दिन मनाई जाती है.

महत्व 

इस पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है. इसे अन्नकूट भी कहा जाता है. जिसके पीछे काफी प्रचलित पौराणिक कथा है. गोवर्धन पूजा में गौ माता की पूजा का भी प्रावधान है. माना जाता है कि जिस प्रकार मां लक्ष्मी धन से कल्याण करती है उसी प्रकार गौ माता अपने दूध से मानव शरीर का कल्याण करती है.

गोववर्द्धन पूजा कथा

इस पूजा के पीछे एक प्रचलित कथा है. कहा जाता है, भगवान् श्री कृष्ण ने अहंकारी इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए, सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत अपनी सबसे छोटी ऊँगली पर उठा रखा था. जिसके नीचे गोपी-गोपिकाओं और गाय-बैलो ने सात दिनों तक शरण ली थी. श्री कृष्ण ने सातवे दिन उन्होंने गोवर्धन को नीचे रखा और हर साल गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट उत्सव मानाने की इजाजद दी. तभी से गोवर्धन पूजा को अन्नकूट उत्सव के नाम से भी जाना जाता है.

पूजा विधि

सुबह जल्दी उठ स्नान कर रसोई में ताजे पकवान बनाये जाते है. घर के आँगन में गाय के गोबर से भगवन गोवर्धन की प्रतिमा बनायी जाती है. साथ ही गाय-भैसों औजारों, चूल्हों आदि को गोबर व मिटटी से बनाया जाता है. इस पूजा के माध्यम से जलवायु के प्राकृतिक संसाधनों की पूजा भी की जाती है. इस पूजा में भगवन कृष्ण की पूजा की जाती है. इस दिन पूरा कुटुंब एक साथ भोजन करता है. 

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