हृदय कब सुखी होता है जब प्रभु आ विराजते है
हृदय कब सुखी होता है जब प्रभु आ विराजते है
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प्रभु की शरण में जाना या प्रभु का स्मरण करने मात्र से ही सभी दुखों का अंत हो जाता है, ऐसा ज्योतिष शास्त्र में भी उल्लेखित किया गया है। हमारा हृदय तभी सुखी होता है जब हृदय में प्रभु आ विराजते है। इसलिए प्रभु का स्मरण करना ही एक मात्र उपाय प्रमुख रूप से बताया गया है।

-संतों का एक ही लक्ष्य होता है भगवान। किसी भी हालत में उनका मन भगवान से नहीं हटता है।
-अहंभाव को छोड़कर विपत्ति को भी संपत्ति मानना ही सच्चा संतोष है।
-उच्च और पवित्र भावना एक ऐसी वस्तु है, जो मनुष्य के मन में आकर भी स्थिर नहीं रहती हे। उसका तो मनुष्य पर बहुत प्रेम है, किंतु मनुष्य की उस पर प्रति हो तब न।
-जो ईश्वर में लीन रहता है वहीं सच्चा संत है।
-जहां ईश्वर की चर्चा होती है वहीं स्वर्ग है।
-ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य के प्रयास से कुछ भी नहीं मिल सकता।
-मनुष्य ज्यों-ज्यों संसारी परदों से ढंकता जाता है, त्यों-त्यों वह प्रभु की पूजा और साधना छोड़ता जाता है।
-आगे-पीछे का विचार छोड़ो। जो हो गया है और जो होगा, उसकी चिंता न करों। वर्तमान में प्रभु के भजन में लगे रहो।

सूर्य देव, यश और वैभव के देवता

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