'जब PMLA आया, तब आप विपक्ष में थे क्या ?' SC के सवाल पर सकपका गए कपिल सिब्बल, कर रहे थे कानून का विरोध
'जब PMLA आया, तब आप विपक्ष में थे क्या ?' SC के सवाल पर सकपका गए कपिल सिब्बल, कर रहे थे कानून का विरोध
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नई दिल्ली: धन-शोधन निवारण अधिनियम यानी PMLA कानून इन दिनों कई नेताओं के लिए सिरदर्द बना हुआ है, खासकर उन नेताओं के लिए जिनपर भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं और वे कई दिनों से कानूनी खामियों का लाभ उठाकर बचे हुए थे। PMLA कानून ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को ये ताकत दे दी है कि, यदि एजेंसी को किसी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार या धनशोधन के सबूत मिलते हैं, तो एजेंसी उसकी संपत्ति जब्त कर सकती है और उसे गिरफ्तार भी कर सकती है। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, बंगाल सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी से लेकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी तक ED की जांच के दायरे में है, यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट में ED की ताकतें घटाने के लिए पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं। हालाँकि, एक तथ्य ये भी है कि, ED सबूतों के आधार पर किसी को अरेस्ट तो कर सकती है, लेकिन सजा नहीं सुना सकती, सजा तो कोर्ट ही सुनाएगी। और कोर्ट में व्यक्ति को दोषी साबित करने के लिए ED को सबूत पेश करने होंगे, यदि व्यक्ति निर्दोष है, तो उसे ED से डरने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती।   

लेकिन, इन सबके बावजूद देश की सबसे बड़ी अदालत में एक बार फिर ED की ताकतें कम करने के लिए सुनवाई का दौर चल रहा है। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कोर्ट में ED को 'बेलगाम घोड़ा' बताया है। इसी बीच बुधवार को शीर्ष अदालत में बेंच की सदस्य रहीं जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और वकील कपिल सिब्बल के बीच तीखी बहस देखने को मिली। बता दें कि, जस्टिस त्रिवेदी के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना भी सुनवाई कर रही पीठ का हिस्सा हैं। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने सिब्बल के सियासी करियर को लेकर सवाल पूछ लिए। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि जब PMLA लागू किया गया था, तब सिब्बल विपक्ष में थे या सत्तारूढ़ पार्टी का हिस्सा थे। दरअसल, सिब्बल कोर्ट में PMLA कानून के खिलाफ दलीलें दे रहे थे। PMLA को साल 2002 में संसद में पास किया गया था, किन्तु 2005 में इसे लागू किया गया। उस समय देश में कांग्रेस के नेतर्त्व वाली UPA सरकार थी और उस सरकार में कपिल सिब्बल केंद्रीय मंत्री के पद पर सुशोभित थे। यानी ये कानून उनकी ही पार्टी ने लागू किया था। बता दें कि, 40 वर्षों तक कांग्रेस और गांधी परिवार के विश्वसनीय रहने के बाद सिब्बल ने पिछले साल पार्टी से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि वे पार्टी में संगठनात्मक परिवर्तन की मांग कर रहे थे और हाईकमान सुनने के मूड में नहीं था, इसके बाद सिब्बल समाजवादी पार्टी (सपा) की मदद से राज्यसभा सांसद बने। कोर्ट का यही कहना था कि, आपकी सरकार ने PMLA लागू किया, खुद आप सरकार का हिस्सा थे, और आज उसी कानून का विरोध कर रहे हैं। 

इस पर सिब्बल ने कहा कि, 'मैं 35 सालों तक MLA रहा, विपक्ष में भी रहा। लेकिन मैंने कभी भी ऐसा कानून नहीं देखा।' इस पर त्रिवेदी ने फिर वही सवाल दागा, 'साल 2005 में कानून लागू होते समय क्या आप विपक्ष में थे?' तो सिब्बल ने कहा, 'हो सकता है कि इसे एक पार्टी ने लागू किया हो और संशोधित किया हो, मगर हमने कभी नहीं सोचा था कि इसे इस प्रकार से लागू किया जाएगा। जो न्यायाधीश पूछ रही हैं, वह विवादास्पद है।' इस पर जस्टिस त्रिवेदी ने दोहराया कि, 'मैं बस यह पूछ रही हूं कि क्या आप उस वर्ष विपक्ष में थे...।' इस पर सिब्बल ने फिर सीधा जवाब नहीं दिया और कहा कि, 'इसका असर बहुत बड़ा है। इससे (PMLA) मिलने वाली ताकतों के चलते यह हमारे देश की राजनीति पर असर डालता है और यह खतरनाक है।'

कपिल सिब्बल से सीधा उत्तर न पाने पर जस्टिस त्रिवेदी ने समन को लेकर सवाल पूछा। जस्टिस ने कहा कि, 'समन में आपके गवाह के रूप में भी बुलाया जा सकता है। हो सकता है कि आप आरोपी के संबंध में कुछ जानते हों। समन किस तरह से अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हैं? जब आपको किसी विषय (भ्रष्टाचार संबंधी) पर जानकारी देने के लिए कहा जाता है, तो क्या यह जीवन और आजादी से आपको वंचित करती है?' इस पर सिब्बल ने कहा कि, 'मगर मुझे यह पता होना चाहिए कि मुझे क्यों बुलाया गया है। CrPC के दिल में आजादी है और जब हमें CrPC की धारा 161 के तहत बुलाया जाता है, तो हम गवाह कहलाते हैं। मगर यहां कुछ स्पष्ट नहीं है, क्योंकि मैं अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे नहीं पता कि मुझे क्यों बुलाया गया और मुझे अरेस्ट भी किया जा सकता है।'

बता दें कि, PMLA कानून पर 2022 में भी सुनवाई हुई थी, वकील कपिल सिब्बल ही थे। दरअसल, मामला ED द्वारा की जा रही गिरफ्तारियों से जुड़ा हुआ है, जो एजेंसी PMLA कानून द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर कर रही है। 2022 में भी सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलीलें सुनने के बाद ED की शक्तियों को बरक़रार रखा था, और कहा था कि 'निर्दोष व्यक्ति को जांच से डरने की क्या आवश्यकता है। यदि किसी को गलत तरीके से गिरफ्तार किया जाता है, तो अदालत के दरवाजे खुले हुए हैं।' लेकिन, इसके बावजूद कई नेता जांच से बचने की कोशिश कर रहे हैं। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन कई समन भेजने के बावजूद ED के समक्ष सवाल-जवाब के लिए पेश नहीं हुए हैं, अभिषेक बनर्जी भी आनाकानी करते रहते हैं। नेशनल हेराल्ड मामले में जब ED ने सोनिया और राहुल गांधी को समन भेजा था, तब कांग्रेस नेताओं ने सड़क पर जमकर बवाल मचाया था। 

अब सुप्रीम कोर्ट के 2022 के फैसले को चुनौती देते हुए और ED की शक्तियां कम करने के लिए एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है। जस्टिस कौल, जस्टिस खन्ना और जस्टिस त्रिवेदी की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। उस फैसले में, शीर्ष अदालत ने PMLA के तहत गिरफ्तारी, धन शोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती की ED की शक्तियों को बरकरार रखा था। कोर्ट ने वकील से यह भी कहा था कि, ''क्या आप ये चाहते हैं कि, राजनेताओं पर कोई जांच या मुकदमा ही नहीं होना चाहिए? क्या यह बचाव का कारण हो सकता है?'' सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि ''एक सियासी दल का नेता भी मूल रूप से एक नागरिक होता है और नागरिकों के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं।'' यह कहकर सुप्रीम कोर्ट ने ED-CBI के खिलाफ 14 विपक्षी दलों की याचिका ख़ारिज कर दी थी। 

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