जाने भूत के बारे में आखिर क्या होते है भूत
जाने भूत के बारे में आखिर क्या होते है भूत
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विज्ञान भूतों को नहीं मानता लेकिन आत्मा जैसी कोई न कोई शक्तिशाली चीज है जो इंसान में रहती है इस बात को लेकर कई रिसर्च किए जा रहे हैं। लेकिन भूत होते हैं? वो कैसे होते हैं? कहां रहते हैं ? कोई नहीं जानता।

वैसे, हिंदू धर्म में गति और कर्म के अनुसार मरने वाले लोगों का वर्गीकृत किया गया है। यानी जो तय मृत्यु से पहले किसी दुर्घटना में या आत्महत्या करते हैं वो भूत बनते हैं। उन्हें अपनी आयु पूरी करनी होती है तभी वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क में पहुंचते हैं।

वैसे वैदिक ग्रन्थ गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। ग्रंथ के अनुसार आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वास और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।

18 तरह के होते हैं भूत

हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।

इसी तरह मनुष्य जन्म 84 लाख योनियां पशुयोनि, पक्षी योनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने के बाद मिलता है। आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेतयोनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं।

कौन बनता है भूत

ऐसे व्यक्ति जो भूख, प्यास, काम से विरक्त होकर राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरता है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।

यम नाम की वायु वेद अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है।

जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है। जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है।

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