साधना-सेवा-सत्संग से बदला महर्षी वाल्मीकि का जीवन
साधना-सेवा-सत्संग से बदला महर्षी वाल्मीकि का जीवन
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जिस साहित्यिक धरोहर को आज हिंदू धर्म संस्कृति के घरों और कहीं कहीं अन्य धर्मों के लोगों द्वारा पढ़ा, बाचा, और मनन किया जाता है वह रचना आदि महर्षि वाल्मीकि द्वारा ही की गई थी। यूं तो वाल्मीकि ऋषी द्वारा तपस्या कर लोक कल्याण किया गया लेकिन देवऋषी नारद द्वारा श्री राम कथा का वर्णन किया गया। जिसके बाद उन्होंने श्री रामायण की रचना की। हालांकि रामायण बहुत ही ज्ञानियों महर्षियों द्वारा लिखी गई लेकिन वाल्मीकिकृत रामायण को बहुत सरल माना जाता है। इसमें जिस तरह से भगवान श्री राम का चरित्र वर्णित किया गया है। वह बहुत ही सहजता से दर्शाया गया है। वाल्मीकि ऋषी के कारण ही लोग भगवान श्री राम का चरित्र विस्तार में जान पाए हैं।

हालांकि उन्हें लेकर कहा जाता है कि वे पहले एक डाकू थे। एक बार देवऋषी नारद पर उनकी नज़र पड़ी और उन्होंने उन्हें लूटने की तैयारी कर ली। ऐसे में नारद मुनी ने उनसे कहा कि आप यह कार्य क्यों करते हैं। तब उन्होंने कहा कि मैं तो परिवार के लिए यह कार्य करता हूं। फिर नारद मुनि ने उनसे पूछा कि आखिर जिस परिवार के लिए आप यह कार्य कर रहे हैं, क्या वह परिवार आपके पाप में भागीदार बन सकेगा।

तब उन्होंने नारद मुनि को एक पेड़ से बांध दिया और घर गए। ऐसे में उन्हें ज्ञात हुआ कि कोई भी उनके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। ऐसे में उन्होंने नारद मुनि से क्षमा याचना की और तपस्या में लीन हो गए। तपस्या करते हुए उनके शरीर को दीमकों ने ढंक लिया। जिसके कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया।

बाद में उनके शरीर से दीमक हट गईं लेकिन जब वे एक नदी तट पर जा रहे थे तो एक बाघ द्वारा क्रोंच पक्षी को अपना ग्राह्य बनाता देख उन्होंने उसे श्राप दे दिया और क्रोंच पक्षी को मुक्त कर दिया। भगवान श्री राम ने स्वयं इन्हें दर्शन दिए थे। वाल्मीकि ऋषी के जीवन चरित्र से हम यह जान सकते हैं कि सत्संग लोगों में बदलाव कर देता है। सत्संग से एक डाकू का वाल्मीकि ऋषी में परिवर्तन हो गया और फिर उन्हें भगवान की प्राप्ति हुई।

उन्होंने कठोर तप आराधना की तो रामायण जैसा ग्रंथ और काव्य लिखा। जब वे क्रोंच पक्षी को श्राप दे रहे थे तो तप के प्रभाव से अनुष्टुप छंद उने मुंह से निकला। दूसरी ओर व्याघ्र के मुख से क्रोंच पक्षी को मुक्त करवाने के कारण उन्होंने सेवा की और रामायण जैसा ग्रंथ लिखकर उन्होंने सत्संग किया। नारद मुनि की प्रेरणा से वे बदले उनमें परिवर्तन हुआ यह उनके लिए सत्संग जैसा रहा।

ऐसे में साधना, सेवा और सत्संग तीनों के माध्यम से उनका दिल बदल गया। आधुनिक युग के धर्म गुरूओं में प्रमुख श्री श्री रविशंकर जी महाराज द्वारा साधना, सेवा और सत्संग का जो महत्व बताया जाता है वह ऋषी वाल्मीकि के जीवन में भी देखने को मिला। उनके परिवर्तन के बाद जिस तरह से लोगों ने उन्हें महर्षी के तौर पर स्वीकार किया वह उनमें बदलाव को दर्शाता है। समाज के लिए यह संदेश भी इस माध्यम से दिया गया है कि हर अच्छे बदलाव को स्वीकार किया जाना चाहिए। आगे चलकर वह समाज के लिए ही हितकारी होता है। 

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