छत्तीसगढ़ / रायपुर : सुप्रीम कोर्ट द्वारा किन्नरों को थर्ड जेंडर का सम्मान मिल गया हो, लेकिन कोलकाता स्थित अमेरिकी दूतावास ने छत्तीसगढ़ की किन्नर अमृता का वीजा एप्लिकेशन यह कहते हुए रोक दिया कि वे सिर्फ स्त्री और पुरुष लिंग को ही जानते हैं। अमृता अल्पेश सोनी राज्य के स्वास्थ्य विभाग में नोडल ऑफिसर हैं। उनका लिंग भारतीय पासपोर्ट में 'टी' (ट्रांसजेंडर) लिखा गया है। सोनी ने अगले महीने आयोजित हो रहे 14वें फिलाडेल्फिया ट्रांस हेल्थ कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए विजिटर्स वीजा हेतु आवेदन किया था। वह मंगलवार को कोलकाता स्थित अमेरिकी दूतावास में हुए इंटरव्यू में शामिल हुईं, लेकिन वहां उन्हें कोई ठोस जवाब नहीं मिला।
उन्हें कहा गया कि उनका आवेदन अभी पेंडिंग में रखा गया है। सोनी ने बताया कि उन्हें 17 अप्रैल को नया भारतीय पासपोर्ट मिला था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक उनका लिंक 'टी' यानी ट्रांसजेंडर लिखा गया था। उन्होंने कहा कि चूंकि US के लिए ऑनलाइन वीजा हेतु आवेदन करने में ट्रांसजेंडर का विकल्प नहीं है, इसलिए उन्होंने अपना लिंग फीमेल (स्त्री) लिख दिया। इंटरव्यू के दौरान वीजा अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने भारतीय पासपोर्ट में लिखे गए टी विकल्प की कोई जानकारी नहीं है इसलिए वे सिर्फ स्त्री और पुरुष का विकल्प मानेंगे।
US दूतावास के अधिकारिक प्रवक्ता से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "अमेरिकी सरकार अपने कड़े नियमों के कारण इस बारे में चर्चा नहीं कर सकती।" अमृता सोनी अपने साथ हुए इस वाकये को भेदभाव का मामला बताते हुए कहती हैं, "जब भारत सरकार हमें थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दे चुकी है, फिर अमेरिकी सरकार इस मामले में अनिर्णय की स्थिति में क्यों है?" अमृता सोनी उस कांफ्रेंस में एचआआई पीड़ित ट्रांसजेंडर्स पर अपना विचार रखने वाली हैं। उन्होंने कहा, "यह एक बड़ा अवसर है और आशा करती हूं कि मैं सिर्फ अपने लिंग के कारण इससे महरूम नहीं रहूंगी।"
राज्य सरकार ने HIV विभाग में नोडल अधिकारी के तौर पर किन्नर अमृता अल्पेश सोनी की नियुक्ति पिछले ही साल की है। थर्ड जेंडर होकर सरकारी पद पाने वाली यह पहली शख्स हैं। अमृता अल्पेश सोनी ने मुंबई से ह्यूमन रिसोर्ट में MBA किया है। सोनी ने किन्नरों के लिए माडलिंग की, परंपरागत किन्नरों की तरह नाच गाकर अपना पेट भरा, सेक्स वर्कर के तौर पर भी काम किया। वह महाराष्ट्र के सोलापुर शहर की रहने वाली हैं। बचपन में उनकी मां के सिवाए मेरे बाप सहित दूसरे रिश्तेदारों ने उन्हें छोड़ दिया था।
उनके चाचा उन्हें इलाज कराने के नाम पर दिल्ली ले आए। पर वहां यौन शोषण करने लगे। किसी तरह बारहवीं पास कर वह वहां से घर लौट गईं। चाचा की करतूत सुनाई तो परिजनों ने नहीं माना, उल्टे घर से निकल जाने को कहा। निराश होकर वह पुणे आ गई। वहां ट्रांसजेंडर्स के लिए काम करने वाली संस्था से जुड़ गईं। इसके बाद कुछ दिन किन्नर समुदाय के साथ रहकर उनका परंपरागत पेशा भी अपनाया। लेकिन बाद में पढ़ने का फैसला किया। उन्हें दिल्ली के जामिया मिलिया कालेज में प्रवेश मिला, वहीं से पढ़ाई पूरी की।
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