घने वृक्ष के रूप में... बुजुर्ग हमे जिंदगी की दुआएं देते हैं
घने वृक्ष के रूप में... बुजुर्ग हमे जिंदगी की दुआएं देते हैं
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जिस प्रकार से एक पौधा जैसे-जैसे समय के साथ बढ़ने पर एक वटवृक्ष का रूप अख्तियार कर सभी को एक समान समझकर छांव देता है. ठीक उसी प्रकार से हर घर में मौजूद हमारे बड़े-बुजुर्ग वृद्धजन भी परिवार व समाज को एक सही दिशा से अवगत कराते है. परन्तु आज की भागमभाग वाली जिंदगी में मनुष्य की व्यस्तता इस हद तक बढ़ गई है की सभी लोग एकांत की तलाश चाहते है. तथा मनुष्य की इसी तलाश के कारण घर परिवारो में एकल परिवार को अत्यधिक बढ़ावा मिला व इसके साथ ही बढ़ी है हमारे बढ़े बुजुर्गो की उपेक्षा व उनका तिरस्कार. हमारे घर के बड़े बुजुर्गो की सीख़ नवयुवाओ को प्रगति के नए मार्ग से हमे अवगत कराती है.

घर में मौजूद हमारे बुजुर्ग वृद्धजन हमसे हुई छोटी-छोटी गलती को भी नजरअंदाज कर हमे हमेशा ही निरंतर जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है. जिस प्रकार एक बच्चे का जन्म होता है उसका बचपन मासूमियत से भरा होता है व युवावस्था में वह भरपूर ऊर्जा,आत्मविश्वास व साहस से परिपूर्ण होता है, तथा ठीक ऐसे ही समय के क्रम के चलने के साथ-साथ आई व्यक्ति की वृद्धावस्था भी बहुत से कीमती अनुभवों का भंडार होती है. आज के समय में बुजुर्गो का तिरस्कार व उन्हें तकलीफ देना आम बात हो गया है. कोई बेटा अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ देता है तो कोई उन्हें घर में ही बुरी तरीके से प्रताड़ित करता है. ऐसे ही एक ताजा घटनाक्रम के तहत एक बहु जो की सास की बेटी समान होती है वह अपने पति के काम पर जाने के बाद सास को इतनी बुरी तरीके से मारती-पीटती थी की वह बुरी तरीके से लहूलुहान हो जाती थी.

जब बेटा शाम को घर आता तो वह माँ की चोट का कारण पूछता तो पत्नी कहती की माजी पलंग पर से गिर गई थी, लड़के को शक हुआ और इसकी सच्चाई के लिए उसने घर में सीसीटीवी कैमरा लगाया तथा सच्चाई देखकर उसके पैरो तले से जमीन ही खिसक गई, सीसीटीवी फुटेज में अपनी पत्नी द्वारा माँ पर की गई हैवानियत देखकर उसने तुरंत ही पत्नी के खिलाफ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करा दी. कहने का तात्पर्य यह है की घर में मौजूद अपने बुजुर्ग-वृद्धजनों का पूरा सम्मान करे. व यह याद रखे की जिन्होंने हमे जन्म दिया है कम से कम उनका तिरस्कार तो न करे. उन्होंने आपको बचपन में संभाला तो आपकी भी जिम्मेदारी बनती हैं कि उन्हें बुढ़ापे में संभाले क्योंकि बुढ़ापा भी बचपन का दूसरा रूप हैं.

मुझे एक बात याद आती है की जब हम छोटे बच्चे थे तो हमारे टूटे-फूटे मुंह से निकले अल्फाज सिर्फ हमारे माता-पिता ही समझ पाते थे व आज हम उसी हस्ती को यह कहते है की (आप नही जानती ),(आप नही समझ पाएँगी),(आपकी बात मुझे समझ नही आती ). अपने बुजुर्ग वृद्धजनों का सम्मान करे इससे पहले की देर हो जाए.... 
 
''सख्त रास्तो में भी आसान सफ़र लगता हैं
ये उसी माँ कि दुवाओ का असर लगता हैं
एक मुद्दत से उसकी माँ नही सोई जब
उसने कहा था कि 'माँ मुझे डर लगता हैं
"

बच्चों को बुजुर्ग वृद्धजनों की सेवा व उनसे प्यार करने की सीख़ दे, क्योंकि आगे यह आपके मान व सम्मान की बात होगी. 
 

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