जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी

जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
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नई दिल्ली : देश की 1300 से अधिक जेलों में 600 प्रतिशत तक अधिक बंदी रखे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को बुरी तरह फटकार लगते हुए कहा कि जेल में बंद ये व्यक्ति बंदी हैं, जानवर नहीं. यदि आप इन्हें सही तरह से नहीं रख सकते तो हमें इन्हें छोड़ देना चाहिए. जेलों की दशा सुधारने को लेकर प्रतिबद्धता की कमी पर अदालत ने नाराजगी जताई.

उल्लेखनीय है कि जस्टिस एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने इस मामले में कोर्ट द्वारा पहले दिए गए निर्णय के तहत क्षमता से अधिक कैदियों वाली जेल की स्थिति सुधारने के लिए कार्य योजना अभी तक पेश नहीं करने पर भी नाराजगी जताई. इस मामले में कोर्ट के तेवर इतने तीखे थे कि उसने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशक (जेल) को अवमानना नोटिस जारी करने की चेतावनी तक दे दी. इन हालातों पर कोर्ट ने सवाल किया कि यदि हम उन्हें जेल में रख भी नहीं सकते तो सुधार पर बात करने का क्या औचित्य है?

आपको बता दें कि इस मामले में तैनात न्यायमित्र ने जानकारी दी कि देश की जेलों में न्यूनतम 150 फीसदी और अधिकतम 609 फीसदी तक क्षमता से ज्यादा कैदी रहते हैं. कोर्ट ने 6 मई, 2016 व 3 अक्टूबर 2016 को दिए अपने निर्णयों में सभी राज्यों को 31 मार्च, 2017 तक ये कार्य योजना जमा करने को कहा था. हालांकि कोर्ट को यह जानकारी दी कि ओपन जेल तैयार करने के लिए 30 अप्रैल, 2018 तक कानून तैयार कर लिया जाएगा.

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