प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने सभी लोकों में काफी उपद्रव किया जिससे परेशान सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा था ।जालंधर बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था।
जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की प्रार्थना की , उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का वचन दिया। जालंधर देवताओं से लगातार युद्ध कर रहा था और उसकी पत्नी के तप के कारण वो अजय बना हुआ था| युद्ध में निकलने से पहले पत्नी वृंदा ने दानव राज जालंधर से कहा जब तक आप युद्ध करते रहेंगे तब तक मैं पूजा में बैठकर आपके विजय के लिये जप अनुष्ठान करती रहूंगी जब तक आप युद्ध से विजयी होकर घर नही लौटते तब तक मैं अपना व्रत नही तोडूंगी आप विजयी होकर घर आये तब अपना संकल्प पूर्ण करुँगी|
जालंधर के साथ देवताओं का दुर्दान्त युद्ध हुआ| और इसी बीच भगवान् विष्णु अपने वचन अनुसार वृन्दा का तप भंग करने जालंधर के रूप में घर पहुंचे, पति जालंधर को घर आया देख वृंदा समझ गयी की युद्ध समाप्त हो गया है और जालंधर विजयी हुए है,अपने संकल्प को पूर्ण हुआ देख वृंदा पूजा समाप्त कर जालंधर संग आनंद से क्रीड़ा करने लगी | इसी दौरान वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही युद्धरत जालंधर मर गया , और उसका शीश वृंदा के महल में आ गिरा |
शीश देखते ही वृंदा समझ गयी के कुछ अनिष्ट हुआ है, बात पता लगते ही क्रोधित होकर उसने जालंधर बने भगवान विष्णु को शाप दिया की वे पत्थर हो जाये और साथ ही कहा की 'जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।' यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई।
जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। श्रापित विष्णु बोले, 'हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। तुम्हारे शाप के कारण मेरा एक रूप काला पत्थर शालिग्राम बनकर सदा इस धरा पर रहेगा, जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा। बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाएगी। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है|