दुआ की मुकम्मल फरियाद है 19 वां रोजा
दुआ की मुकम्मल फरियाद है 19 वां रोजा
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रमज़ान के पाक महीने का आज 19 वां रोज़ा है. कुरआने-पाक के पहले पारे (अध्याय-एक) की सूरह 'अलबकरह' की आयत नंबर एक सौ बावन (आयत-152) में खुद अल्लाह (ईश्वर) का इरशाद (आदेश) है- 'सो तुम मुझे याद किया करो, मैं तुम्हें याद किया करूंगा और मेरा अहसान मानते रहना और नाशुक्री नहीं करना.' इसमें उन्नीसवें रोजे की खासियत और फजीलत (महिमा) का भी बयान किया जा सकता है.

जानकारों के अनुसार, मगफिरत का अशरा (मोक्ष का कालखंड) अल्लाह (ईश्वर) के जिक्र पर (ईमान की पुख्तगी के साथ) जोर देता है. इसलिए उन्नीसवां रोजा अल्लाह की मुसलसल (लगातार) याद है और रोजादार के लिए दुआ की मुकम्मल (पूर्ण) फरियाद है. यानि इस रोजे का भी बहुत महत्व है जिसे मुस्लिम लोग पूरा करते हैं. 

इस आयत में अल्लाह (ईश्वर) का वादा भी तो जाहिर हो रहा है. अल्लाह का ये वादा 'सो तुम मुझे याद किया करो, मैं तुम्हें याद किया करूँगा' सिर्फ इशारा नहीं है बल्कि जाहिर कौल (प्रॉमिस) है और करार (कान्ट्रेक्ट) है. अल्लाह चूंकि रहीम है इसलिए उसने रहम फरमाया है, नरमी बरती है और फिर कहा कि 'मेरा अहसान मानते रहना और नाशुक्री नहीं करना' तो ये हुक्म तो है यानी 'आर्डर' तो है मगर इसमें भी अल्लाह ने 'फजल' (कृपा) की गारंटी पहले दिए गए कौल (तुम मुझे याद किया करो, मैं तुम्हें याद करूंगा) में दे दी है.

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