लोगों को पसंद नहीं आई तापसी की दोबारा, एक्टिंग ने दर्शकों को कर दिया निराश
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बात कोई 10 दिन पहले की ही बात है। अनुराग कश्यप की मूवी ‘दोबारा’ की वक़्त से पहले की स्क्रीनिंग का न्यौता भी मिल गया है। मेजबानी मूवी  क्रिटिक्स गिल्ड की थी और वादा था कि मूवी पूरी होने के उपरांत इसके निर्देशक भी फिल्म देखने वालों से मिलने आने वाले है। मूवी क्रिटिक्स गिल्ड को निर्माता निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की पत्नी और समीक्षक अनुपमा चोपड़ा चलाती हैं। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की मूवी ‘द कश्मीर फाइल्स’ के रिव्यू को लेकर बना किस्सा सबको ही मालूम है। अनुराग की मूवी की मेजबानी करके 10 दिन पहले ही उन्होंने नई लकीर खींच दी था। बीते दो तीन दिनों से अनुराग और विवेक सोशल मीडिया पर भिड़े हुए हैं। मूवी ‘दोबारा’ भी इसी के चलते चर्चा में चल रहे है। उधर, स्पेन की जिस मूवी ‘मिराज’ पर ये मूवी बनी है, उसे नेटफ्लिक्स पर देखने वालों की संख्या हर रोज बढ़ती जा रही है।

समझ सको तो समझो दिलबर जानी: स्पैनिश मोवए ‘मिराज’ से प्रेरित अनुराग कश्यप की नई मूवी ‘दोबारा’ की गति भी एस्केप वेलोसिटी जैसी ही है। ये शुरू से लेकर आखिर तक रेडियो और टेलीविजन पर प्रसारित हो रही खबरों के माध्यम से ये कहती है कि जो तूफान परदे पर नजर आ रहा है, वैसा मौसम जब भी बनता है कुछ ऐसी चीजें घटती रही हैं जिनका कारण विज्ञान भी नहीं समझ पाया है। इन धारणाओं के साथ मूवी की कहानी शुरू होती है। कहानी दो अलग अलग कालखंडों की है जिसे जोड़ता है एक पुरानी टेलीविजन। 2 कालखंडों में बंटी कहानी के पहले भाग में एक क़त्ल होता  है और उसके चश्मदीद बालक की सड़क हादसे में जाना चली जाती है। कहानी के दूसरे भाग  में जो आज के वक़्त  में घट रही है उसमें एक हॉस्पिटल में नर्स का काम करने वाली महिला के घर में रखे पुराने टेलीविजन पर उसे वही किशोर दिखता है और वह उसे बाहर जाने से रोक लेती है। यानी कि इस स्टोरी के हिसाब से अब बालक नहीं मरता है। तो अब शुरू होती है त्रिकोणमिति सी गणित कि अगर बालक नहीं मरा तो फिर उस कहानी का क्या क्या बदल जाएगा? और, क्या होगा यदि अपनी कहानी में नर्स बनी ये महिला, उस बालक की कहानी में किसी और पहचान के साथ नजर आएगी?

देखें कि ना देखें: मूवी ‘दोबारा’ में तमाम जाने पहचाने और कुछ नए चेहरे दिखाई देते है। पवैल गुलाटी अनुराग कश्यप की ही खोज रहे हैं, वह काम भी अच्छा कर रहे है। राहुल भट का किरदार दोनों कहानियों में बीवी को धोखा देता रहता है और फिल्म समाप्त होने से ठीक पहले उसके किरदार के चरित्र का निर्णय भी हीरोइन सुना देती है। दोनों कहानियों के फंदे बुनने वाला किरदार जिस बालक का है उसे शौर्य दुग्गल ने बेहतर तरीके से निभाया है। मूवी में सिल्वेस्टर फोनसेका की सिनेमैटोग्राफी ही मूवी को देखने का आकर्षण बनाए हुए रखे है, हालांकि मूवी का संपादन और बेहतर हो सकता था और गीत संगीत के केस में भी मूवी कमजोर है। अनुराग कश्यप के तगड़े प्रशंसकों के लिए ही ये मूवी बनी है, बाकी आम मेधा शक्ति वाले इस फिल्म को पहली बार में शायद ही समझ पाएं और फिल्म दोबारा देखने की हिम्मत ना हो तो ‘दोबारा’ से दूर ही रहें।

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