नारायणमूर्ति ने 21 साल बाद की ऑटो रिक्शा की सवारी
नारायणमूर्ति ने 21 साल बाद की ऑटो रिक्शा की सवारी
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नई दिल्ली : कभी कभी परिस्थितियां ऐसी निर्मित हो जाती है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी वह करने को मजबूर हो जाता है जो वह नहीं चाहता है. ऐसा ही कुछ इन्फोसिस के सह संस्थापक एन.आर.नारायणमूर्ति के साथ हुआ. उन्होंने 21 साल बाद ऑटो रिक्शा में बैठने का अपना अनुभव साझा किया. नारायणमूर्ति को अपने दोस्त के साथ हुए भ्रम ने 21 साल बाद ऑटो रिक्शा में बैठने का मौका दिया. शुक्रवार को साहित्यिक सम्मेलन में नारायणमूर्ति ने इस घटना के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि यह एक बेहद शानदार अनुभव रहा.

दरअसल हुआ यूँ कि गुरुवार को नारायण मूर्ति अपने एक दोस्त से मिलने वाले थे और इस मुलाकात के लिए दोनों के बीच हुए भ्रम के कारण कोई भी कार नहीं लाया. इसके बाद दोनों रिक्शा लेकर तय स्थान पर पहुंचे. मूर्ति ने कहा कि ऐसा शानदार अनुभव पिछले 21 सालों में पहली बार हुआ है. इस घटना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि 70-80 के दशक में मैं अपनी पत्नी सुधा के साथ कई बार रिक्शा में बैठा था.

घटना का विस्तृत ब्यौरा देते हुए मूर्ति ने बताया कि कार्यक्रम की आयोजक मंजीरी प्रभु ने मुझसे पूछा कि मुझे कार की जरूरत होगी? मैंने कहा कि मैं मेरे एक दोस्त के साथ डिनर करूंगा तो शायद वो कार लाएगा इसलिए मैंने मना कर दिया. मेरे मित्र ने सोचा कि मेरे पास कार होगी इसलिए वह भी कार नहीं लाया. मैंने कहा कि क्यों ना हम रिक्शा से चलें और इस तरह से उन्होंने अपने दोस्त के साथ एक यादगार रिक्शा की सवारी की.

आयोजित कार्यक्रम में इन्फोसिस के सह संस्थापक एन.आर.नारायणमूर्ति ने कहा भारतीय उद्योगपतियों को देश की गरीबी को दूर करने के लिए हरसंभव सहायता करनी चाहिए. उन्होंने कहा मुझे पूंजीवाद दयालु नहीं दिखता है. अगर हम चाहते हैं कि भारत के अधिकतर लोग पूंजीवाद को अपनाएं तो उसके लिए उद्योगपतियों को उनके साथ दयालु किस्म का व्यवहार करना पड़ेगा.

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