अब भूल जाओ 370 ! सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग, देशहित में था केंद्र सरकार का फैसला, कुछ भी अवैध नहीं
अब भूल जाओ 370 ! सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग, देशहित में था केंद्र सरकार का फैसला, कुछ भी अवैध नहीं
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नई दिल्ली: आज यानी सोमवार (11 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर मुहर लगाते हुए मोदी सरकार को बड़ी राहत दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है। बता दें कि, पूर्व कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया था और जम्मू कश्मीर में 370 फिर से लागू करवाने की मांग की थी। यहाँ तक कि, इसके लिए सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने तक की मांग कर डाली थी, हालाँकि, कोर्ट में उनकी दलीलें नहीं चलीं और मोदी सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी।  

दरअसल, मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर पर अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दाखिल की गईं थीं। सुनवाई के बाद कोर्ट ने सितंबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।  अनुच्छेद 370 हटने के 4 साल, 4 महीने और 6 दिन बाद आज सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं, ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।

CJI चंद्रचूड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसका उल्लेख है। उन्होंने कहा कि जब भारतीय संविधान अस्तित्व में आया, तो अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर पर लागू हो गया।CJI चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 370 को रद्द करने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी लागू रहती है। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को ख़त्म करने के निर्णय का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर का एकीकरण है और इसे हटाने का राष्ट्रपति का आदेश संवैधानिक रूप से वैध है। फैसला सुनाते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, यह पुष्टि करते हुए कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, जिसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।

CJI ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की घोषणा की वैधता के सवाल को अब प्रासंगिक नहीं माना। उन्होंने दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर शासन करने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसे याचिकाकर्ताओं द्वारा विशेष रूप से चुनौती नहीं दी गई थी। CJI चंद्रचूड़ ने बताया कि जब राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं लग जाती हैं. इसकी उद्घोषणा के तहत, राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिए गए निर्णयों को संभावित अराजकता को रोकने के लिए कानूनी चुनौती नहीं दी जा सकती। CJI ने कहा कि, प्रदेश को 370 हटने से फायदा हुआ है और केंद्र सरकार का ये फैसला देशहित में है। साथ ही CJI ने ये भी कहा कि, 370 अस्थायी व्यवस्था थी, जिसे हटाया जा सकता था और इसे हटाने की प्रक्रिया में केंद्र सरकार ने संविधान का कोई उल्लंघन नहीं किया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि, भारत का संविधान ही जम्मू कश्मीर में भी लागू होगा। 

फैसले पर सभी पांच जजों ने सहमति जताई. सीजेआई चंद्रचूड़ ने उल्लेख किया कि इस मामले में तीन अलग-अलग फैसले लिखे गए थे, जिसमें न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत उनके साथ अपना फैसला सुनाने में शामिल हुए थे। वहीं, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कहा है कि, वे इसे देखेंगे फिर बात करेंगे। बता दें कि, कांग्रेस शुरू से 370 हटाने का विरोध करती रही है, जो 370 जम्मू कश्मीर को अलग संविधान, अलग झंडा देता था, उसे वापस लागू करवाने के लिए विपक्षी दलों में आम सहमति देखी जाती है। 

दलितों के साथ सबसे बड़ा छलावा था 370:-

बता दें कि, जो कांग्रेस और सपा एक तरफ अपने आप को दलित हितैषी भी बताती है और 370 वापस लागू करने की बात भी करती है। वो ये अच्छी तरह जानती है कि, 370 दलितों के लिए कितना बड़ा छलावा था। अनुच्छेद 370 और 35 A के तहत राज्य में सालों से रह रहे दलितों, वंचितों को वहां की नागरिकता तक नहीं मिली थी, जिसके कारण ये लोग न तो घाटी में संपत्ति खरीद सकते थे, न विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकते थे और सबसे गंभीर बात तो ये है कि, जम्मू कश्मीर में यह नियम था कि, दलितों की संतानें कितनी भी पढ़ लें, मगर फिर भी उन्हें मैला ही उठाना होगा, उन्हें नौकरी मिलेगी तो केवल सफाईकर्मी की, इसके अलावा नहीं। ये अपने आप में हैरान करने वाली बात है कि, 370 को वापस लागू करवाने की मांग करने वाली तथाकथित राजनितिक पार्टियां अपने आप को दलित हितैषी बताती हैं। यहाँ ये भी गौर करने वाली बात है कि, जहाँ कश्मीर में दलितों के साथ ये भेदभाव था, वहीं कोई भी पाकिस्तानी, कश्मीरी महिला से शादी करके वहां का नागरिक बन सकता था और तमाम लाभ ले सकता था। इसी कारण घाटी में आतंकवाद भी जमकर पनप रहा था। इन धाराओं से जम्मू कश्मीर को अलग संविधान मिल गया था, जिसमें मनमाफिक संशोधन करके इस्तेमाल किए जाते थे। 

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