जिंदगी, मैं और मेरा परिवार में सिमट गई है
जिंदगी, मैं और मेरा परिवार में सिमट गई है
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आज कल की शादीयो मे बुफे खाने में वो आनंद कहाँ जो पहले की शादियों में पंगत खाने में आता था जैसे ...
* पहले जगह रोकना !
* बिना फटे पत्तल दोनों को छाँटना !
* चप्पल जुते पर आधा ध्यान रखना !
* फिर पत्तल पे ग्लास रखकर उड़ने से रोकना !
* नमक रखने वाले को जगह बताना यहां रख !
* दाल सब्जी देने वाले को गाइड करना हिला के दे या तरी तरी देना!
* उँगलियों के इशारे से 2 गुलाब जामुन और इमरती लेना !
* पूडी छाँट छाँट के गरम गरम लेना !
* भजिये के आते ही थोड़े गरम और लेते आना कहना !
* कचोरी के आते ही एक कचोरी और रखना !
* पीछे वाली पंगत में झांक के देखना क्या-क्या आ गया ! 
* अपने पत्तल में क्या बाकी है। और जो बाकी है उसके लिए जोर से आवाज लगाना !
* पास वाले रिश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूडी रखवाना !
* रायते वाले को दूर से आता देखकर फटाफट रायते का दोना पीना ।
* पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी। उसके हिसाब से बैठने की पोजीसन बनाना। और सबसे आखरी में पानी वाले को खोजना। पुराने दिन आज भी जब याद आते हे तो ये सभी यादें एका एक ताज़ा हो जाती हे। वो भी क्या दिन थे कुछ न होते हुवे भी बहुत संतोष था और आजकल सब कुछ होते हुवे भी जरा सा संतोष नहीं हे। पहले आपस में कितना प्यार था सारे दोस्तों और परिवार के साथ खाने में ज्यादा मजा आता था और अब बस में और मेरा परिवार में सिमट गये है ।
आज रह रह कर भी यही ख्याल दिमाग में आता हे वही पुराने दिन अच्छे थे काश वही दिन जीवन में वापस लौटकर आ जाये तो जीवन कितना सुखी हो जायें ।

 

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