इंदौर: कुछ बिरले ही शख्स होते हैं जो अपने पुण्य संचयों से दुनिया में ऐसे कार्य कर जाते हैं, जो उन्हें अमरत्व प्रदान कर जाते हैं. सामाजिक जीवन में शिक्षा ही ऐसा क्षेत्र है जहां व्यक्ति अपनी इच्छानुसार समाज सेवा करके नई पीढ़ी को संस्कार और नसीहत की सौगात तो दे ही सकता है.मरणोपरांत भी शिक्षा की ज्योत को जलाए रख सकता है. कुछ ऐसी ही सोच को सार्थक किया है पेशे से शिक्षिका रही स्वर्गीय श्रीमती मालिनी ललित उर्फ़ उषा ताई ने, जिन्होंने मरणोपरांत अपनी देह को मेडिकल के छात्रों को प्रायोगिक शिक्षा के लिए दान करके शासकीय सेवा से ही नहीं, बल्कि देह से निवृत्ति के बाद भी जारी रख कर एक मिसाल कायम कर गई.मृत शरीर के रूप में उनकी भौतिक उपस्थिति शिक्षा को निरन्तर जारी रखेगी.इस मायने में उषा ताई हमारी यादों में ही नहीं, वरन सदेह मौजूद रहेंगी. उन्होंने अपनी देह का दान करके ऋषि दधीचि की परम्परा को आगे बढ़ा कर स्तुत्य ही नहीं अनुकरणीय कार्य किया है.
उल्लेखनीय है कि श्रीमती मालिनी ललित (उषा ताई)का 82 वर्ष की आयु में 15 अगस्त की शाम को उनके इन्द्रपुरी (इंदौर) स्थित निवास पर निधन हो गया. पेशे से शिक्षिका रही श्रीमती मालिनी का वैवाहिक जीवन अल्प कालिक रहा. उनके पति गोपाल ललित बीच में ही साथ छोड़ परलोक सिधार गए. संघर्ष का दौर चालू हो गया .ऐसे में दो बेटे आनंद, माधव और एक बेटी नलिनी की जिम्मेदारी श्रीमती मालिनी ललित पर ही आ गई थी.लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उस समय जबकि बेटियों को ज्यादा पढ़ाने का चलन ही नहीं था, तब उन्होंने मांटेसरी ट्रेनिंग कर शिक्षिका के रूप में बच्चों को विद्यादान का संकल्प लिया. इंदौर से रोजाना कार्य स्थल ग्राम डकाच्या में बच्चों को पढ़ाने जाती और घर आकर सिलाई का काम करती ताकि परिवार के जीविकोपार्जन करने योग्य आय का इंतजाम हो जाए.
परिवार की बड़ी बहू होने के नाते मालिनी जी ने अपने बच्चों के साथ ही अपने दो छोटे देवरों को माँ का प्यार देकर उन्होंने न केवल बड़ा किया बल्कि यथा समय उनके विवाह संपन्न कराकर सब की घर-गृहस्थी बसाने की अहम जिम्मेदारी निभाकर अपने पति के इस दायित्व को पूरा किया. बेटे जब आत्म निर्भर हो गए तो अपनी आय से समाज के छोटे छोटे कामों के लिए, तो कभी अनजान जरूरतमंद को मदद करने लगीं. इससे श्रीमती मालिनी को बड़ा संतोष मिलता. इसी तरह जीवन गुजरता रहा.
जैसे जैसे उनकी उम्र बढ़ी तो परिवार की जिम्मेदारियां से मुक्ति पाकर बुढ़ापे में ईश्वर की आराधना में लग गई. प्रभु मिलन निकट जानकर उन्होंने अपने देहदान की मंशा परिजनों के समक्ष व्यक्त की. उनकी इस अंतिम इच्छा को परिजनों ने स्वीकार कर सम्मान देते हुए अपनी सहमति दे दी.इस प्रकार संघर्ष भरा जीवन जी कर सबको साथ लेकर चलने और सब की मदद करनेवाली श्रीमती मालिनी ललित (उषा ताई) मरणोपरांत देहदान कर समाज के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर गई. अपने जीवनकाल में मालिनी जी ने शिक्षा की जो ज्योति जलाई थी वह उनके द्वारा देह दान किये जाने से मरणोपरांत भी अनवरत जलती रहेगी.उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !